मानव नेत्र

मानव नेत्र

मानव नेत्र एक बॉल के समान संरचना है। जिसका व्यास 2.3 सेमी होता है। तथा यह सुग्राही ज्ञानेंद्रय है। समस्त ज्ञानेंद्रियों में आँख सबसे महत्वपूर्ण ज्ञानेंद्रीय है। इससे हम अपने चारों के संसार को देख पाते हैं।
1. कॉर्निया या स्वच्छ पटल

प्रकाश एक पतली झिल्ली से होकर आँख में प्रवेश करता है। यह नेत्र के अग्र पृष्ठ पर पायी जाती है। जो पारदर्शी उभार बनाती है।
1. कॉर्निया या स्वच्छ पटल
2. पारितारिका
3. पुतली
4.अभिनेत्र लैंस
5. रेटिना(दृष्टि पटल)
6. दृग तंत्रिकाएं
7. काचाभ द्रव
2. पारितारिका
कॉर्निया के पीछे एक संरचना पायी जाती जो गहरी पेशीय डायफ्राम होती है। जिसे परितारिका कहते हैं। यह पुतली के साईज को नियंत्रित करती है।
3. पुतली
यह अभिनेत्र लैंस के आगे पायी जाती है। जो अभिनेत्र लैंस में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है।
4.अभिनेत्र लैंस
यह एक ऐसा लैंस है जो वस्तु का प्रतिबिंब सदैव रेटिना पर बनाता है। इसकी प्रकृति उत्तलीय होती है। जिसे पक्ष्माभी पेशीयाँ व्यवस्थित रखती हैं।
5. रेटिना(दृष्टि पटल)
अभिनेत्र लैंस प्रकाश की किरणों को एक कोमल सूक्ष्म झिल्ली पर केंद्रित कर देता है जहाँ वस्तु का प्रतिबिंब बनता है। जिसे रेटिना कहते हैं।
6. दृग तंत्रिकाएं
रेटिना में बहुत अधिक संख्या में प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ होती हैं। जो प्रकाश के आने पर प्रदीप्त हो जाती हैं। तथा विद्युत् सिग्नल उत्पन्न करती हैं। ये विद्युत् सिग्नल दृग तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचा दिये जाते हैं। मस्तिष्क इन सूचना का अध्ययन करता है। जिससे हमें कोई वस्तु जैसी है। वैसी दिखाई देती है।
7. काचाभ द्रव
अभिनेत्र लैंस तथा रेटिना के बीच एक द्रव भरा होता है। जिसे काचाभ द्रव कहते हैं।
समंजन क्षमता
अभिनेत्र लैंस अपनी फोकस दूरी को वस्तु की दूरी के अनुरूप समायोजित कर लेता है ताकी प्रतिबिंब रेटिना पर बन सके। इसे अभिनेत्र लैंस की समंजन क्षमता कहते हैं।
अभिनेत्र लैंस की फोकस दूरी 25 सेमी. से कम नहीं हो सकती यदि हम छपे हुए पृष्ठ को 25 सेमी. से कम दूरी पर रखकर पढ़ें तो हमें धुंधला दिखाई देगा।
मोतियाबिंद
अधिक आयु वाले व्यक्तियों के नेत्र का अभिनेत्र लैंस दूधिया अथवा धुंधला हो जाता है। जिसे मोतियाबिंद कहते हैं। इस स्थिति में नेत्र दृष्टि कम भी हो सकती है तथा खो भी सकती है। इसका उपचार शल्य चिकित्सा के द्वारा किया जा सकता है।
दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन
लैंस में अपवर्तन के कारण भी दोष उत्पन्न हो सकता है। जिसका कारण लैंस द्वारा अपनी समंजन क्षमता का खोना है। इस स्थिति में भी साफ दिखाई नहीं देता है। अपवर्तन के कारण नेत्र में निम्न तीन दोष उत्पन्न हो सकते हैं-
1. निकट-दृष्टि दोष
2. दूर(दीर्घ)-दृष्टि दोष
3. जरा-दूरदृष्टिता दोष
1. निकट-दृष्टि दोष
इस दोष युक्त व्यक्ति निकट रखी हुई वस्तुओं को तो स्पष्ट देख लेता है। लेकिन दूर रखी हुई वस्तु स्पष्ट नहीं दिखाई देती है।
कारण
इस दोष का प्रमुख कारण नेत्र गोलक का लंबा होना है। अथवा इस दोष में अभिनेत्र लैंस की वक्रता अधिक हो जाती है। जिससे प्रतिबिंब रेटिना पर न बनकर रेटिना से पहले बनता है।
उपाय
उपयुक्त क्षमता के अवतल लैंस का उपयोग कर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। यदि हम इस दोष से ग्रसित हैं तो उपयुक्त क्षमता के अवतल लैंस वाले ऐनक लगाकर इससे मुक्त हो सकते हैं। अवतल लैंस निकट दृष्टि दोष में प्रतिबिंब को पुन: रेटिना पर बना देता है।
3. जरा-दूरदृष्टिता दोष
व्यक्ति की आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ नेत्र लैंस की समंजन क्षमता घटती है। अधिकांश व्यक्तियों का निकट बिन्दु दूर हट जाता है। संशोधक चश्मों के बिना उन्हें पास की वस्तुओं को देखने में परेशानी आती है।
कारण
यह दोष पक्षमाभी पेशियों के दुर्बल होन से अथवा क्रिस्टलीय लैंस के लचीलेपन में कमी होने से होता है।
कभी-कभी वृद्ध व्यक्ति के नेत्र में निकट तथा दूर दोनों प्रकार के दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इस स्थिति में द्विफोकसी लैंसों का उपयोग कर दोष का उपाय किया जाता है।
द्विफोकसी लैंस में उत्तल तथा अवतल दोनों प्रकार के लैंस होते हैं।
प्रिज्म से श्वेत प्रकाश का विक्षेपण

जब प्रिज्म पर श्वेत प्रकाश अथवा सूर्य के प्रकाश को आपतित किया जाता है तो प्रिज्म का झुका हुआ अपवर्तक पृष्ठ श्वेत प्रकाश को सात रंगो में विभक्त कर देता है। इस घटना को श्वेत प्रकाश का विक्षेपण कहते हैं।
ये सात रंग पट्टियों के रूप में एक के ऊपर एक के क्रम में होते हैं। जिस रंग का अपवर्तन सबसे अधिक होता है वह रंग क्रम में सबसे नीचे तथा जिस रंग का अपवर्तन सबसे कम होता है वह रंग क्रम में सबसे नीचे होता है।
प्रिज्म से श्वेत प्रकाश का विक्षेपण होने पर रंगों का नीचे से ऊपर की ओर का क्रम VIBGYOR होता है।
जैसे V से violet यानी बैंगनी जो रंगो के क्रम में सबसे नीचे होता है। सबसे नीचे होने का अर्थ है की इसका अपवर्तन सबसे अधिक होता है। जिसका कारण इस रंग की चाल प्रिज्म में सबसे कम है।
इसी प्रकार R से red यानी लाल रंग जो रंगों के क्रम में सबसे ऊपर होता है। जिसका कारण लाल रंग की प्रिज्म में सर्वाधिक चाल है।
श्वेत प्रकाश के विक्षेपण में रंगों का क्रम नीचे से ऊपर की ओर निम्न होता है।
बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।

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