Essay writting in hindi

1. स्कूल में मेरा प्रथम दिन

मैं आठवीं कक्षा की विद्यार्थी हूं। इसी वर्ष मैंने नए स्कूल में दाखिला लिया है। इस स्कूल का पहला दिन मुझे अच्छीो तरह याद है। मेरे लिए यह बड़ा ही रोमांचक और यादगार दिन था। मैं एक दिन पहले से ही बहुत खुश और उत्तेजित थी।
पिताजी मेरे लिए नया स्कूल बैग, पुस्तकें लाए थे और मेरे लिए नई यूनिफॉर्म भी सिलवाई थी। मां ने कुछ सीखें दीं और पिताजी ने उत्साह भरे शब्दों के साथ मुझे स्कूल के लिए रवाना किया। स्कूल बस से मैं समय पर स्कूल पहुंच गई। प्रिंसिपल ने नए विद्यार्थियों का स्वागत किया। सभी विद्यार्थियों को तिलक लगाकर उनकी आरती भी उतारी गई। उन्होंने प्यार से मेरी पीठ थपथपाई। सभी बच्चों के चेहरों पर मुस्कुराहट थी और कक्षा में भी उत्साह का वातावरण था।


कक्षा में सभी विद्या‍र्थियों से उनके नाम आदि के बारे में जानकारी ली गई। मैंने लंच ब्रेक में जाकर कैंटीन में कचोरियां भी खाईं। इसके बाद हम वापस अपनी-अपनी कक्षाओं में चले गए। फिर दो पीरियड के बाद गेम्स पीरियड आया। मैंने खो-खो खेला यह मेरा पसंदीदा खेल है।


छुट्टीि की घंटी बजने पर बच्चे उछलकूद करते हुए विद्यालय परिसर से बाहर आ गए। बाहर खड़ी स्कूल बस में बैठकर हम अपने-अपने घरों को आ गए। रास्ते में भी हम सब ढेर सारी बातें करते हुए घर आए। मैं इस दिन को कभी नहीं भूलूंगी।
2. स्वतंत्रता दिवस उत्सव


सदियों की गुलामी के पश्चात 15 अगस्त सन् 1947 के दिन आजाद हुआ। पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे। उनके बढ़ते हुए अत्याचारों से सारे भारतवासी त्रस्त हो गए और तब विद्रोह की ज्वाला भड़की और देश के अनेक वीरों ने प्राणों की बाजी लगाई, गोलियां खाईं और अंतत: आजादी पाकर ही चैन ‍लिया। इस दिन हमारा देश आजाद हुआ, इसलिए इसे स्वतंत्रता दिवस कहते हैं।
अंग्रेजों के अत्याचारों और अमानवीय व्यवहारों से त्रस्त भारतीय जनता एकजुट हो इससे छुटकारा पाने हेतु कृतसंकल्प हो गई। सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद ने क्रांति की आग फैलाई और अपने प्राणों की आहुति दी। तत्पश्चात सरदार वल्लभभाई पटेल, गांधीजी, नेहरूजी ने सत्य, अहिंसा और बिना हथियारों की लड़ाई लड़ी। यह दिन 1947 से आज तक हम बड़े उत्साह और प्रसन्नता के साथ मनाते चले आ रहे हैं। इस दिन सभी विद्यालयों, सरकारी कार्यालयों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है, राष्ट्रगीत गाया जाता है और इन सभी महापुरुषों, शहीदों को श्रद्धांजल‍ि दी जाती है जिन्होंने स्वतंत्रता हेतु प्रयत्न किए। मिठाइयां बांटी जाती हैं।



सत्याग्रह आंदोलन किए, लाठियां खाईं, कई बार जेल गए और अंग्रेजों को हमारा देश छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया। इस तरह 15 अगस्त 1947 का दिन हमारे लिए 'स्वर्णिम दिन' बना। हम, हमारा देश स्वतंत्र हो गए।


हमारी राजधानी दिल्ली में इस दिन का ऐतिहासिक महत्व है। इस दिन की याद आते ही उन शहीदों के प्रति श्रद्धा से मस्तक अपने आप ही झुक जाता है जिन्होंने स्वतंत्रता के यज्ञ में अपने प्राणों की आहु‍ति दी। इसलिए हमारा पुनीत कर्तव्य है कि हम हमारे स्वतंत्रता की रक्षा करें। देश का नाम विश्व में रोशन हो, ऐसा कार्य करें। देश की प्रगति के साधक बनें न‍ कि बाधक।




हमारे प्रधानमंत्री लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं। वहां यह त्योहार बड़ी धूमधाम और भव्यता के साथ मनाया जाता है। सभी शहीदों को श्रद्धां‍जलि दी जाती है। प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम संदेश देते हैं। अनेक सभाओं और कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
घूस, जमाखोरी, कालाबाजारी को देश से समाप्त करें। भारत के नागरिक होने के नाते स्वतंत्रता का न तो स्वयं दुरुपयोग करें और न दूसरों को करने दें। एकता की भावना से रहें और अलगाव, आंतरिक कलह से बचें।
हमारे लिए स्वतंत्रता दिवस का बड़ा महत्व है। हमें अच्छेह कार्य करना है और देश को आगे बढ़ाना है।
3. ताजमहल का भ्रमण


ताजमहल में अंदर जाने के लिये कई प्रवेश द्धार हैं इन्ही पर टिकट भी मिलता है । पहली बार की यात्रा में तो हम इसे समझ ही नही पाये थे । इस इमारत को देखने के लिये काफी समय चाहिये होता है । हम दोनो तो मथुरा से ही गये थे क्योंकि हमारे पास बस का पास था और मथुरा से आगरा ज्यादा दूर भी नही है साथ ही बस की सेवा भी काफी बढिया है ।
हमने अपना होटल भी मथुरा में ही रखा पता नही आगरा में कहां कहां पर होटल ढूंढना पडता । उसमें ही काफी समय लग जाता उसकी बजाय उतना समय घूमने में लगाना उचित था ।  मथुरा में बस में हमारे साथी बना एक परिवार भी हमारे साथ था । जून की गर्मिया थी और ताजमहल बिलकुल भी सुंदर नही लग रहा था क्योंकि उसके पत्थर भी तप रहे थेसो मथुरा से सुबह सुबह चलकर हम लोग आगरा पहुंचे । हमारे साथ एक परिवार और भी था जो कि कल वृंदावन में बस के सफर में हमारे साथ थे । उनके और हमारे बीच में काफी बढिया समझ बन गयी थी ।
पहली बार में और इतनी भीड में तो आपको पता ही नही चलता है कि आप किधर से आये थे और हम गलती से दूसरे द्धार से निकल गये ।
सुरक्षा व्यवस्था काफी रहती है और टिकट के लिये भी काफी लम्बी लाइन में लगना पड जाता है कभी कभी ।


कुल मिलाकर गर्मी में कभी मत देखने जाना मेरी तो यही राय है क्योंकि वहां की गर्मी देखकर हमारा रोडवेज के पास को भी भूल जाने का मन किया । हमें अब तक तीसरा दिन था । पहले दिन हम घर से चले थे , दूसरे दिन हमने ब्रज घूमा और तीसरे दिन हम आगरा में गर्मी से पस्त हो चुके थे ।
इसी वजह से हमने यहां से जल्दी निकलने का फैसला किया । हां हमने आगरा में आगरा का किला भी देखा पर हम ये जरूर फैसला कर चुके थे कि बस अब बहुत हो चुका अब कहीं ठंडी जगह पर चलते हैं और फिर यहां से हम नैनीताल के लिये चले गये ।
4. चिड़ियाघर का भ्रमण


चिड़ियाघर जाने में विद्यार्थियों को सामान्यत: आनन्द आता है| चिड़ियाघर वह स्थान है जहाँ विभिन्न प्रकार की चिड़िया व पशु रखे जाते है| चिड़ियाघर जाना सदैव आनन्दमय होता है|

पिछले रविवार को मैं अपने मित्रों के साथ चिड़ियाघर गया| वहां दो विभाग थे| एक विभाग में जानवर थे और दुसरे विभाग में पक्षी|

सबसे पहले हम जानवर वाले विभाग में गये| वहां कई पिंजड़े थे| उनमें लोहे के सरिये लगे हुए थे| पिछले पिंजड़े में शेरों का एक जोड़ा था| अगले पिंजड़े में एक बाघ था| यह सो रहा था| अगले पिंजड़े में अनेक प्रकार के बन्दर थे| हमने उन्हें मुंगफलियाँ दी| उन्होंने इन्हें ख़ुशी से खाई| वे इधर-उधर कूद रहे थे| वहां एक खुला हुआ एक बड़ा पिंजड़ा था| वहां अनेक हिरण और बारहसिंगे थे|

फिर हम पक्षियों वाले विभाग में गये| वहां अनेक प्रकार के भारतीय और विदेशी पक्षी थे| वे विभन्न आकर व रंग के थे| वहां कुछ कृत्रिम पोखर(तालाब) थे| वहां बतखें और सारस थे| वे वे भुत सुंदर दिखाई पड़ रहे थे|
5. दीपावली


प्रत्येक समाज त्योहारों के माध्यम से अपनी खुशी एक साथ प्रकट करता है। हिन्दुओं के प्रमुख त्योहार होली, रक्षाबंधन, दशहरा और दीपावली हैं। इनमें से दीपावली सबसे प्रमुख त्योहार है। इस त्योहार का ध्यान आते ही मन-मयूर नाच उठता है। यह त्योहार दीपों का पर्व होने से हम सभी का मन आलोकित करता है।
यह त्योहार कार्तिक माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। अमावस्या की अंधेरी रात जगमग असंख्य दीपों से जगमगाने लगती है। कहते हैं भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, इस खुशी में अयोध्यावासियों ने दीये जलाकर उनका स्वागत किया था।
श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध भी इसी दिन किया था। यह दिन भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी है। इन सभी कारणों से हम दीपावली का त्योहार मनाते हैं।
यह त्योहार लगभग सभी धर्म के लोग मनाते हैं। इस त्योहार के आने के कई दिन पहले से ही घरों की लिपाई-पुताई, सजावट प्रारंभ हो जाती है।
नए कपड़े बनवाए जाते हैं, मिठाइयां बनाई जाती हैं।
वर्षा के बाद की गंदगी भव्य आकर्षण, सफाई और स्वच्छाता में बदल जाती है। लक्ष्मी जी के आगमन में चमक-दमक की जाती है।

यह त्योहार पांच दिनों तक मनाया जाता है। धनतेरस से भाई दूज तक यह त्योहार चलता है। धनतेरस के दिन व्यापार अपने बहीखाते नए बनाते हैं। अगले दिन नरक चौदस के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करना अच्छाह माना जाता है। अमावस्या के दिन लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है। खील-बताशे का प्रसाद चढ़ाया जाता है। नए कपड़े पहने जाते हैं। फुलझड़ी, पटाखे छोड़े जाते हैं। असंख्य दीपों की रंग-बिरंगी रोशनियां मन को मोह लेती हैं। दुकानों, बाजारों और घरों की सजावट दर्शनीय रहती है।
अगला दिन परस्पर भेंट का दिन होता है। एक-दूसरे के गले लगकर दीपावली की शुभकामनाएं दी जाती हैं। गृहिणियां मेहमानों का स्वागत करती हैं। लोग छोटे-बड़े, अमीर-गरीब का भेद भूलकर आपस में मिल-जुलकर यह त्योहार मनाते हैं।
दीपावली का त्योहार सभी के जीवन को खुशी प्रदान करता है। नया जीवन जीने का उत्साह प्रदान करता है। कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते हैं, जो घर व समाज के लिए बड़ी बुरी बात है। हमें इस बुराई से बचना चाहिए। पटाखे सावधानीपूर्वक छोड़ने चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि हमारे किसी भी कार्य एवं व्यवहार से किसी को भी दुख न पहुंचे, तभी दीपावली का त्योहार मनाना सार्थक होगा।
6. रेलवे प्लेटफार्म का दृश्य


पिछले वर्ष गर्मी की छुट्टियों में अपने मित्रों के साथ बम्बई से आबू पर्वत जा रहा था| गाड़ी छूटने के लगभग एक घंटा पहले हम रेलवे स्टेशन पर जा पहुँचे|
स्टेशन के बाहर टैक्सीयां का ताँता लगा हुआ था| मोटर-गाड़ियाँ रास्ता रोक कर खड़ी थीं| लाल पगड़ी वाले कुली यात्रियों के पास पहुँचकर सामान उतारने के पहले मजदूरी तय कर रहें थे| स्टेशन में टिकट घर के सामने तिल धरने की जगह न थी|
प्लेटफार्म पर मानो रंगबिरंगी पोशाक की प्रदर्शनी लगी हुई थी| अगल-अगल प्रकार की पोशाक वाले लोगों का मेला-सा लगा हुआ था| कोई दाहिना हाथ अपनी पैण्ट की जेब में डाले हुए बाएँ हाथ से सिगरेट का धुआँ उड़ा रहा था, तो कोई पान वाले को आवाज दे रहा था| कोई नल पर कुल्ले कर रहा था, कोई जूठे बर्तन धो रहा था| सभी अपने-अपने रंग में मस्त थे| 'बाजु' दूर हटो' 'संभाल' की आवाजें लगाते हुए कुली दौड़-धुप कर रहे थे| चाय वाले, खोमचे वाले और अन्य फुटकर विक्रेताओं की 'पुड़ी-साग', 'पान-सिगरेट', 'पूरी मिठाई' जैसी आवाज़ों से प्लेटफार्म गूँज रहा था| टिकट चेकर भी इधर-उधर दौड़-धुप कर रहे थे|
गाड़ी आते ही प्लेटफार्म पर बड़ी हलचल मच गई| गाड़ी में जगह पाने के लिए कुली और कुछ यात्री चलती हुई गाड़ी में चढ़ने लगे| कोई दरवाजा खोलने लगा, तो कोई खिड़की से घुसने लगा| सामान गाड़ी में ढकेला जाने लगा| डिब्बे से झगड़ने की आवाजें कानों के पर्दे फाड़ने लगीं| छोटे बच्चे चील्ला रहे थे| कोई किसी की नहीं सुन रहा था| सबको अपनी-अपनी पड़ी थी| हाँ, आरक्षित डिब्बों में शोरगुल आपेक्षाकृत कम था|
सब यात्री अपने-अपने स्थान पर जम गए और वातावरण कुछ शांत हुआ, तो लोग चाय, थम्सअप, आइसक्रीम आदि का मजा लेने लगे| बच्चे खिलौने वाले को पुकार रहे थे| एक ओर यात्रा पर जा रहें पति-पत्नी का दृश्य बड़ा ही मनमोहक था, तो दूसरी ओर बेटी से बिछुड़ती हुई माँ का दृश्य बड़ा ही ह्रदयद्रावक था| ऐसी सजीव दुनिया बसी थी प्लेटफार्म पर|

गाड़ी छूटने की सीटी बजते ही 'शुभयात्रा', 'गुड बाई', पत्र लिखना' आदि शब्दों से प्लेटफार्म का सारा वातावरण फिर एक बार गूँजा बिदा देने लगे| न जाने उनके प्यार-भरे हृदय में कैसी हलचल मच रही होगी ? गाड़ी रवाना हो गई, तब प्लेटफार्म पर आनंद , उत्साह और शोरगुल की जगह सूनापन और शांति का साम्राज्य छा गया|
सचमुच, रेलवे स्टेशन पर एक ही घंण्टे में मानव जीवन के विविध रूपों के दर्शन हो जाते हैं| हमारे मन में फुर्ती दौड़ जाती है| मुख्य रूप में रेलवे स्टेशन मिलने और वियोग का अनोखा स्थल है|
8. अस्पताल


चिकित्सालय या अस्पताल (hospital) स्वास्थ्य की देखभाल करने की संस्था है। इसमें विशिष्टताप्राप्त चिकित्सकों एवं अन्य स्टाफ के द्वारा तथा विभिन्न प्रकार के उपकरणों की सहायता से रोगियों का निदान एवं चिकित्सा की जाती है।
अस्पताल (Hospital) या चिकित्सालय तथा औषधालय मानव सभ्यता के आदिकाल से ही बनते चले आए हैं। वेद और पुराणों के अनुसार स्वयं भगवान ने प्रथम चिकित्सक के रूप में अवतार लिया था। 5,000 वर्ष या इससे भी प्राचीन इतिहास में चिकित्सालयों के प्रमाण मिलते हैं, जिनमें चिकित्सक तथा शल्यकोविद (सर्जन) काम करते थे। ये चिकित्सक तथा सर्जन रोगियों को रोगमुक्त करने और उनके आर्तिनाशन तथा मानवता की ज्ञानवृद्धि के भावों से प्रेरित होकर स्वयंसेवक की भांति अपने कर्म में प्रवृत्त रहते थे। ज्यों-ज्यों सभ्यता तथा जनसंख्या बढ़ती गई त्यों त्यों सुसज्जित चिकित्सालयों तथा सुसंगठित चिकित्सा विभाग की आवश्यकता भी प्रतीत होने लगी। अतएव ऐसे चिकित्सालय सरकार तथा सेवाभाव से प्रेरित जनसमुदाय की ओर से खोले जाने का प्रमाण इतिहास में मिलता है। हमारे देश में दूर- दूर के गाँवों में भी कोई न कोई ऐसा व्यक्ति होता था, चाहे वह अशिक्षित ही हो, जो रोगियों को दवा देता और उनकी चिकित्सा, करता था। इसके पश्चात् आधुनिक समय में तहसील तथा जिलों के अस्पताल बने जहाँ अंतरंग (इनडोर) और बहिरंग (आउटडोर) विभागों का प्रबंध किया गया। आजकल बड़े बड़े नगरों मेंअस्पताल बनाए गए हैं, जिनमें भिन्न-भिन्न चिकित्सा विभागों के लिए विशेषज्ञ नियुक्त किए गए हैं। प्रत्येक आयुर्विज्ञान (मेडिकल) शिक्षण संस्था के साथ बड़े बड़े अस्पताल संबद्ध हैं और प्रत्येक विभाग एक विशेषज्ञ के अधीन हैं, जो कालेज में उस विषय का शिक्षक भी होता है। आजकल यह प्रयत्न किया जा रहा है कि गाँवों में भी प्रत्येक पाँच मील के क्षेत्र में चिकित्सा का एक केंद्र अवश्य हो।

आधुनिक अस्पताल की आवश्यकताएँ अत्यंत विशिष्ट हो गई हैं और उनकी योजना बनाना भी एक विशिष्ट कौशल या विद्या है। प्रत्येक अस्पताल का एक बहिरंग विभाग और एक अंतरंग विभाग होता है, जिनका निर्माण वहाँ की जनता की आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है।
आधुनिक अस्पतालों का निर्माण इंजीनियरिंग की एक विशेष कला बन गई है। अस्पतालों के निर्माण के लिए राज्य के मेडिकल विभाग ने आदर्श मानचित्र (प्लान) बना दिए हैं, जिनमें अस्पताल की विशेष आवश्यकताओं और सुविधाओं का ध्यान रखा गया है। सब प्रकार के छोटे-बड़े अस्पतालों के लिए उपयुक्त नकशे तैयार कर दिए गए हैं जिनके अनुसार अपेक्षित विस्तार के अस्पताल बनाए जा सकते हैं।
अस्पताल बनाने के पूर्व यह भली-भाँति समझ लेना उचित है कि अस्पताल खर्च करनेवाली संस्था है, धनोपार्जन करनेवाली नहीं। आधुनिक अस्पताल बनाने के लिए आरंभ में ही एक बड़ी धनराशि की आवश्यकता पड़ती हैं; उसे नियमित रूप से चलाने का खर्च उससे भी बड़ा प्रश्न है। बिना इसका प्रबंध किए अस्पताल बनाना भूल है। धन की कमी के कारण आगे चलकर बहुत कठिनाई होती है और अस्पताल का निम्नलिखित उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता:
नत्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग नापुनर्भवम्।
कामये दु:खतप्तानाम् प्राणिनामार्तिनाशनम्।।
हमारा देश अति विस्तृत तथा उसकी जनसंख्या अत्यधिक है। उसी प्रकार यहाँ चिकित्सा संबंधी प्रश्न भी उतने ही विस्तृत और जटिल हैं। फिर जनता की निर्धनता तथा शिक्षा की कमी इस प्रश्न को और भी जटिल कर देती है। इस कारण चिकित्साप्रबंध की आवश्यकताओं के अध्ययन के लिए सरकार की ओर से कई बार कमेटियाँ नियुक्त की गई हैं। भोर कमेटी ने जो सिफारिशें की हैं आनके अनुसर प्रत्येक 10 से 12 सहस्र जनसंख्या के लिए 75 रोगियों को रखने योग्य एक ऐसा अस्पताल होना चाहिए जिसमें छह डाक्टर और छह उपचारिकाएँ तथा अन्य कर्मचारी नियुक्त हों। यह प्राथमिक अंग कहलाएगा। ऐसे 20 प्राथमिक अंगों पर एक माध्यमिक अंग भी आवश्यक है। यहाँ के अस्पताल में 1,000 अंतरंग रोगियों को रखने का प्रबंध हो। यहाँ प्रत्येक चिकित्साशाखा के विशेषज्ञ नियुक्त हों तथा परिचारिकाएँ और अन्य कर्मचारी भी हों। एक्स-रे, राजयक्ष्मा, सर्जरी, चिकित्सा, व्याधिकी, प्रसूति, अस्थिचिकित्सा आदि सब विभाग पृथक-पृथक हों। माध्यमिक अंग से परे ओर उससे बड़ा, केंद्रीय या जिले का विभाग या अंग हो, जहाँ उन सब प्रकार की चिकित्साओं का प्रबंध हो, जिनका प्रबंध माध्यमिक अग के अस्पताल में न हो। यही पर सबसे बड़े संचालक का भी स्थान हो।
इस आयोजन का समस्त अनुमित व्यय भारत सरकार की संपूर्ण आय से भी अधिक है। इस कारण यह योजना अभी तक कार्यान्वित नहीं हो सकी है।
आजकल जनसंख्या और उसी के अनुसार रोगियों की संख्या में वृद्धि होने से विशेष प्रकार के अस्पतालों का निर्माण आवश्यक हो गया है। प्रथम आवश्यकता छुतहे रोगों के पृथक अस्पताल बनाने की होती है, जहाँ केवल छुतहे रोगी रखे जाते हैं। इसी प्रकार राजक्ष्मा के रोगियों के लिए पृथक अस्पताल आवश्यक है। मानसिक रोग, अस्थिरोग, बालरोग, स्त्रीरोग, प्रसूतिगृह, विकलांगता आदि के लिए बड़े नगरों में पृथक अस्पताल आवश्यक हैं। छोटे नगरों में एक ही अस्पताल में कम से कम भिन्न-भिन्न अपेक्षित विभाग बनाना आवश्यक है। इन अस्पतालों का निर्माण भी उनके आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न प्रकार से करना होता है और उसी प्रकार वहाँ के कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती हैं। इन सब प्रकार के अस्पतालों के मानचित्र तथा वहाँ की समस्त आवश्यकताओं की सूची सरकार ने तैयार कर दी है, जिनके अनुसार सब प्रकार के अस्पताल बनाए जा सकते हैं।
9. वर्षा का एक दिन
भारत में वर्षा ऋतु एक बेहद ही महत्वपूर्ण ऋतु है। वर्षा ऋतु आषाढ़, श्रावण तथा भादो मास में मुख्य रूप से होती है।
जून माह से शुरू होने वाली वर्षा ऋतु हमें अप्रैल और मई की भीषण गर्मी से राहत दिलाती है। यह मौसम भारतीय किसानों के लिए बेहद ही हितकारी एवं महत्वपूर्ण है।
'हवाएं हमेशा उच्च वायुदाब से कम वायुदाब वाले इलाके की ओर चलती हैं।' अब बात फिर शुरू करते हैं। गर्मी के दिनों में भारत के उत्तरी मैदान और प्रायद्वीप पठार भीषण गर्मी से तपते हैं और यहां निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है।
इसके उलट दक्षिण में हिन्द महासागर ठंडा रहता है। ऐसी भीषण गर्मी के कारण ही महासागर से नमी लेकर हवाएं भारत के दक्षिणी तट से देश में प्रवेश में करती हैं।
1 जून के करीब केरल तट और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में मानसून सक्रिय हो जाता है। हमारे देश में वर्षा ऋतु के अमूमन तीन या चार महीने माने गए हैं। दक्षिण में ज्यादा दिनों तक पानी बरसता है यानी वहां वर्षा ऋतु ज्यादा लंबी होती है जबकि जैसे-जैसे हम दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हैं तो वर्षा के दिन कम होते जाते हैं।
वर्षा का मानव जीवन में बेहद ही महत्व है क्योंकि पानी के बिना जीवन संभव नहीं है।
वर्षा से फसलों के लिए पानी मिलता है तथा सूखे हुए कुएं, तालाबों तथा नदियों को फिर से भरने का कार्य वर्षा के द्वारा ही किया जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि जल ही जीवन है।
इस मौसम में छोटे-छोटे जीव-जंतु जो गर्मी के मारे जमीन के नीचे छिप जाते हैं, बाहर निकल जाते हैं। मेंढ़क की टर्र-टर्र की आवाज सुनाई पड़ने लगती है। आकाश में प्राय: बादल छाए रहते हैं।
वर्षा ऋतु का आनंद लेने के लिए लोग पिकनिक मनाते हैं। गांवों में सावन के झूलों पर युवतियां झूलती हैं। वर्षा ऋतु में ही रक्षा बंधन, तीज आदि त्योहार आते हैं। इस ऋतु में अनेक बीमारियां भी फैल जाती हैं।
मानव जीवन में जल का अत्यंत महत्व है। इसीलिए अच्छी वर्षा के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगाने चाहिए ताकि हमारा पर्यावरण स्वच्छ और हरा भरा बना रहें।
हमें वर्षा के जल को भी संचित करके रखना चाहिए ताकि हमें कभी सूखे का सामना ना करना पड़े।
10. स्कूल की पुस्तकालय
ज्ञान-विज्ञान की असीम प्रगति के साथ पुस्तकालयों की सामाजिक उपयोगिता और अधिक बढ़ गयी हैI युग-युग कि साधना से मनुष्य ने जो ज्ञान अर्जित किया है वह पुस्तकों में संकलित होकर पुस्तकालयों में सुरक्षित है|
वे जनसाधारण के लिए सुलभ होती हैंI पुस्तकालयों में अच्छे स्तर कि पुस्तकें रखी जाती हैं; उनमें कुछेक पुस्तकें अथवा ग्रन्थमालाएं इतनी महँगी होती हैं कि सर्वसाधारण के लिए उन्हें स्वयं खरीदकर पढ़ना संभव नहीं होताI यह बात संदर्भ ग्रंथों पर विशेष रूप से लागु होती हैI बड़ी-बड़ी जिल्दों के शब्दकोशों और विश्वकोशों तथा इतिहास-पुरातत्व कि बहुमूल्य पुस्तकों को एक साथ पढ़ने का सुअवसर पुस्तकालयों में ही संभव हो पाता है|
इतना ही नहीं, असंख्य दुर्लभ और अलभ्य पांडुलिपियां भी हमें पुस्तकालयों में संरक्षित मिलती हैंI आज आवश्यकता है कि नगर-नगर में अच्छे और संपन्न पुस्तकालय खुलें जिससे बच्चों की पुस्तकें पढ़ने में रूचि बढ़े और देश कि युवा प्रतिभाओं के विकास के सुअवसर सहज सुलभ हों|
11. भारतीय कृषक
भारत एक कृषि-प्रधान देश हैं| यहाँ ७५ प्रतिशत गाँव है| इन गाँवों में रहनेवाले किसानों का जीवन परोपकार की भावना से भरा हुआ है, पर उसका व्यक्तिगत जीवन और पारिवारिक अवस्था दयनीय दिखाई देती है|
भारतीय किसान को भारत माँ का सपूत कहना उचित होगा| भगवान को तो अन्नदाता कहा जाता है, साथ ही किसान को भी इसी उपाधि से विभूषित करते हैं| इसका कारण यह है कि वह परिश्रम करके हमारे लिए तरह-तरह के अनाज उगाता है| संस्कृत में कहा गया है - "परोपकाराय सता विभूतय: " सज्जनों का जीवन दूसरों की भलाई के लिए होता है, किसान भी सज्जन है, जिसका सारा जीवन जन-कल्याण से भरा हुआ है|
भारतीय किसान में अनेक गुण होते हैं|वह सादगी की मूर्ति होता है|वह धार्मिक प्रवृत्ति का सत्पुरुष होता है|दो बैल उसके साथी होते हैं|वे भोले-भाले होते हैं|उसका स्वाभाव , दया और सहानुभूति से परिपूर्ण होता है|
अन्नदाता कहलाने के बावजूद सामाजिक रूप से उसका जीवन सुखी नहीं होता| निराक्षरता और अज्ञान के कारण गाँव के अन्य लोग उसे अनेक तरह से धोखा देते हैं| इसका परिणाम यह होता है कि उसका अधिकांश जीवन निर्धनता से भरा होता है|
खुशी की बात यह है की भारत सरकार किसानों को साक्षर और आधुनिक तकनीक ज्ञान देने के क्षेत्र में काफी सक्रीय हो गई है| अब भारतीय किसान की दशा सुधरती जा रही है| वह अज्ञान-रूपी अंधकार से ज्ञान-रूपी प्रकाश की ओर बढ़ रहा है| उसे देश-विदेश के अमचारों से अवगत कराया जा रहा है| अब उसका आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा है| उसका भावी जीवन उज्ज्वल दिखाई दे रहा है|
भारतीय किसान की दशा केवल खेती से नहीं सुधर सकती| खेती का काम बारहों महीनें नहीं रहता| अंत: गाँव में छोटे-मोटे उद्योग-धंधे भी स्थापित करने चाहिए, जिनमे खेतों के औजार विशेष रूप से बनने चाहिए| यातायात की सुविधा गाँवों को मिलनी चाहिए, जिससे वह अपना अनाज बड़ी मंडियों में बेच सके और बनियों के शोषण से बच सके|
12. मेरा स्कूल
विद्यालय अर्थात्+आलय यानी विद्या का घर। विद्यालय में सभी जाति, धर्म और वर्ग के बच्चे बढ़ने आते हैं। विद्यालय शासकीय और अशासकीय दोनों प्रकार के होते हैं। मेरे नगर में कई विद्यालय हैं। मैं सुभाष माध्यमिक विद्यालय में पढ़ता हूं। यह नगर के मध्य नई सड़क पर स्थित है।
मेरे विद्यालय का भवन नविनिर्मित है अत: भव्य और सर्वसुविधाओं से युक्त है। आगे बगीचा है जिसकी देखभाल हम सभी करते हैं, क्योंकि हमारे पाठ्ययक्रम में बागवानी भी है। 10 बड़े कमरे, 2 हॉल हैं। एक हॉल में प्रार्थना होती है व दूसरे हॉल में सभाएं एवं अन्य कार्यक्रम होते हैं। पानी पीने की समुचित व्यवस्था है। पीछे बड़ा खेल का मैदान है, जहां खेल व्यायाम होते हैं।
हमारा विद्यालय परिवार बहुत बड़ा है। लगभग 400 विद्यार्थी यहां पढ़ते हैं। लगभग 20 अध्यापक/ अध्यापिकाएं और एक प्रधानाध्यापक तथा 2 चपरासी हैं। प्रधानाध्यापक शाला कार्य संचालन करते हैं। सभी गुरुजन विद्वान, परिश्रमी एवं छात्रों को हर समय मार्गदर्शन देते हैं।
हमारे प्रधानाध्यापकजी का अनुशासन बड़ा कठोर है। शाला के नियमों का पालन करना सभी के लिए अनिवार्य है। वे स्वयं शाला में समय पूर्व आते हैं और विसर्जन के पश्चात घर जाते हैं। सभी गुरुजन लगनपूर्वक अध्यापन करवाते हैं इसलिए नगर के विद्यालयों में हमारे विद्यालय का परीक्षाफल सर्वश्रेष्ठ रहता है। बच्चे शाला से पलायन नहीं करते, क्योंकि प्रत्येक छात्र की कठिनाई को समझ उसे दूर करने का प्रयत्न किया जाता है।
हमारे विद्यालय में अध्ययन के अतिरिक्त अन्य कार्यक्रम भी होते हैं। हर शनिवार को बालसभा होती है। गांधी जयंती, तुलसी जयंती, हिन्दी दिवस, बाल दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि मनाए जाते हैं। बाल फिल्म एवं प्रकृति निरीक्षण हेतु ले जाया जाता है। खेलकूद, साहित्यिक प्रतियोगिताएं होती हैं। विजेताओं को शाला के वार्षिक उत्सव में पुरस्कार दिए जाते हैं। पास के गांव में ले जाकर श्रमदान करवाया जाता है।
इस प्रकार मेरी शाला में छात्रों के सर्वांगीण विकास हेतु सतत प्रयत्न किए जाते हैं। छात्र पुस्तकालय में अच्छीव-अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करते हैं और लाभ लेते हैं। मेरा विद्यालय नगर में सर्वश्रेष्ठ विद्यालय है। मुझे उस पर गर्व है।
13. एक दुर्घटना
देश में हर एक मिनट पर सड़क दुर्घटना और चार मिनट पर इससे एक मौत होती है। शहर से अधिक ग्रामीण इलाके में सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं। एनएच व एसएच की तुलना में अन्य सड़कों पर दुर्घटना अधिक होती है पर मरने वालों का औसत एनएच दुर्घटना में सबसे अधिक है। 11 से 17 जनवरी तक सड़क सुरक्षा सप्ताह की तैयारी व लोगों से सुझाव लेने को लेकर हुई बैठक में यह तथ्य सामने आए।
बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सभागार में हुई बैठक में उपाध्यक्ष अनिल कुमार सिन्हा, पटना के डीटीओ दिनेश कुमार राय, डीएसपी विजय कुमार, आइसीसी के क्षेत्रीय निदेशक कमल शाही, बिहार राज्य महिला उद्योग संघ की अध्यक्ष पुष्पा चोपड़ा, बीआईजी के संजय पांडेय आदि ने दुर्घटना से बचाव के लिए राय रखी। अनुज तिवारी ने प्रजेंटेशन के माध्यम से बताया कि 2012 में सड़क दुर्घटना में कमी आयी है, लेकिन दुर्घटना में जिसकी मौत होती है, उनमें सबसे अधिक घर के कमाऊ सदस्य या नौजवान होते हैं।
34 तरह की आपदा उपाध्यक्ष अनिल कुमार सिन्हा ने कहा कि 34 तरह की आपदा हैं। सबसे अधिक मौत सड़क दुर्घटना में होती है। हमें जनजागरण व जनशिक्षण पर जोर देना होगा। बच्चों से लेकर हर उम्र के लोगों को सड़क पर चलते समय नियम-कानून का पालन करना चाहिए। एजुकेशन, इन्फोर्समेंट, इंजीनियरिंग व रोड एक्सीडेंट के बाद इमरजेंसी केयर की व्यवस्था पर जोर देना होगा।
बिहार सरकार इन चारों बिंदुओं को ध्यान में रखकर काम कर रही है। सड़क सुरक्षा सप्ताह के दौरान इंडियन ऑयल के सभी पेट्रोल पंप पर पंफलेट बांटे जाएंगे। डीटीओ ने बताया कि 12 जनवरी को कारगिल चौक से डाकबंगला चौराहे तक दौड़, स्कूलों में वाद-विवाद व निबंध प्रतियोगिता आयोजित होंगी।
21. कम्प्यूटर का महत्व
आज मानव तकनीकी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए बेतहाशा व्याकुल हैं। आज मानव हर क्षेत्र में नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। आजकल संस्थाओं तथा उद्योग धंधों में कम्यूटर का प्रयोग विशाल पैमाने पर हो रहा है।
साथ ही हर छोटी से छोटी समस्या को सुलझाने के लिए भी कम्प्यूटर का प्रयोग किया जा रहा है। चाहे वो मोबाइल में रिचार्ज करवाना हो या फिर बिजली का बिल भरने का कार्य। कम्प्यूटर आज रोजमर्रा की उपयोगी वस्तुओं में से एक बन चुका है।
कम्प्यूटर एक यांत्रिक मस्तिष्क है, जिसमें अनेक प्रकार के गणित के सूत्रों एवं तथ्यों का संचालन कार्यक्रम पहले से ही संपादित करना होता है। कम्प्यूटर बेहद ही कम समय में गणना करके तथ्यों को अपनी स्क्रीन पर दिखा देता है।
कम्प्यूटर का उपयोग :-
1. औद्योगिक क्षेत्र में मशीनों तथा कारखानों का संचालन करने के लिए कम्प्यूटर को प्रयोग में लाया जाता है।
2.सूचना एवं समाचार : सूचना एवं समाचार के संदर्भ में भी कम्प्यूटर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहा है। कम्प्यूटर नेटवर्क के द्वारा विश्व भर के नगर एक-दूसरे से एक परिवार की भांति जुड़ गए हैं।
3. बैंकिंग क्षेत्र में : बैंकों में हिसाब-किताब रखने के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग अधिक से अधिक किया जा रहा है। यही नहीं घर के कम्प्यूटरों को भी बैंक के कम्प्यूटरों से संबद्ध किया जा सकता है।
4. विज्ञान के क्षेत्र में : आज अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में कम्प्यूटर राम-बाण सिद्ध हुआ है। इसके द्वारा अंतरिक्ष के विशाल पैमाने पर चित्र एकत्र किए जा रहे हैं।
आज कम्प्यूटर हर क्षेत्र में अनिवार्य हो रहा है। भारत वर्ष में एक प्रकार से कम्प्यूटर युग का ही आगमन हो रहा है।
आज इसकी मदद से हर व्यक्ति अपनी छोटी-बड़ी समस्याओं का समाधान कम्प्यूटर के जरिए आसानी से ढूंढ लेता है।
41. राष्ट्रीय एकता और अखंडता
हमारा देश विभिन्न संस्कृतियों का देश है जो समूचे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। अलग-अलग संस्कृति और भाषाएं होते हुए भी हम सभी एक सूत्र में बंधे हुए हैं तथा राष्ट्र की एकता व अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
संगठन ही सभी शक्तियों की जड़ है,एकता के बल पर ही अनेक राष्ट्रों का निर्माण हुआ है,प्रत्येक वर्ग में एकता के बिना देश कदापि उन्नति नहीं कर सकता। एकता में महान शक्ति है। एकता के बल पर बलवान शत्रु को भी पराजित किया जा सकता है।
राष्ट्रीय एकता का मतलब ही होता है, राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न-भिन्न विचारों और विभिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना। राष्ट्रीय एकता में केवल शारीरिक समीपता ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उसमें मानसिक,बौद्धिक, वैचारिक और भावात्मक निकटता की समानता आवश्यक है।
संगठन ही सभी शक्तियों की जड़ है,एकता के बल पर ही अनेक राष्ट्रों का निर्माण हुआ है,प्रत्येक वर्ग में एकता के बिना देश कदापि उन्नति नहीं कर सकता। एकता में महान शक्ति है। एकता के बल पर बलवान शत्रु को भी पराजित किया जा सकता है।
राष्ट्रीय एकता का मतलब ही होता है, राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न-भिन्न विचारों और विभिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना। राष्ट्रीय एकता में केवल शारीरिक समीपता ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उसमें मानसिक,बौद्धिक, वैचारिक और भावात्मक निकटता की समानता आवश्यक है।
एकता का अर्थ यह नहीं होता कि किसी विषय पर मतभेद ही न हो। मतभेद होने के बावजूद भी जो सुखद और सबके हित में है उसे एक रूप में सभी स्वीकार कर लेते हैं। राष्ट्रीय एकता से अभिप्राय है सभी नागरिक राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत हों सभी नागरिक पहले भारतीय हों,फिर हिन्दू, मुसलमान या अन्य।
भारत विभिन्न संस्कृतियों,धर्मों और सम्प्रदायों का संगम स्थल है। यहां सभी धर्मों और सम्प्रदायों को बराबर का दर्जा मिला है। हिंदु धर्म के अलावा जैन,बौद्ध और सिक्ख धर्म का उद्भव यहीं हुआ है। अनेकता के बावजूद उनमें एकता है। यही कारण है कि सदियों से उनमें एकता के भाव परिलक्षित होते रहे हैं। शुरू से हमारा दृष्टिकोण उदारवादी है। हम सत्य और अहिंसा का आदर करते हैं।
पिछला|अगला
हमारे मूल्य गहराई से अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं जिन पर हमारे ऋषि-मुनियों और विचारकों ने बल दिया है। हमारे इन मूल्यों को सभी धर्मग्रंथों में स्थान मिला है। चाहे कुरान हो या बाइबिल,गुरुग्रंथ साहिब हो या गीता, हजरत मोहम्मद, ईसा मसीह, गुरुनानक, बुद्ध और महावीर,सभी ने मानव मात्र की एकता,सार्वभौमिकता और शांति की महायात्रा पर जोर दिया है। भारत के लोग चाहे किसी भी मजहब के हों,अन्य धर्मों का आदर करना जानते हैं। क्योंकि सभी धर्मों का सार एक ही है। इसीलिए हमारा राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष है।
जब देश आजाद हुआ था तो उस वक्त प्रबुद्ध समझे जाने वाले कई लोगों ने यह घोषणा की थी कि विविधताओं के इस देश का बिखरना तय है। सीधे तौर पर देखें तो आज उनकी बात असत्य मालूम पड़ती है। पर अगर गहराई में जाकर समझा जाए तो यह समझने में देर नहीं लगती है कि भले ही देश ना टूटा हो लेकिन धर्म,जाति आदि के नाम पर समाज बंटा जरूर है। सियासतदान समय-समय पर धर्म,जाति के नाम पर लोगों को बांटकर राजनीति की रोटी सेंकते रहे हैं। फिरकापरस्ती के लिए अब भाषा और क्षेत्र को भी हथियार बनाया जा रहा है।
भाषा और क्षेत्र के नाम पर बढ़ने वाली हिंसा से सामाजिक संतुलन का बिगड़ना भी स्वाभाविक है। इससे क्षेत्रवाद और जातिवाद फैलेगा। समाज खांचों में बंटने लगेगा। माइक्रो लेवल की चीजों को बढ़ावा देने से क्षेत्रीय असंतुलन भी बढेग़ा। इससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि जिनकी भलाई के नाम पर हिंसा की जा रही है,उनकी हालत पर भी नकारात्मक असर ही पड़ने वाला है।
किसी भी सभ्य और लोकतान्त्रिक राष्ट्र की आधारशिला यह है कि वह अपने नागरिकों में लिंग,धर्म,जाति,आर्थिक स्थिति आदि के आधार पर बिना किसी भेदभाव के सबके साथ समान व्यवहार करें। वास्तव में राज्य द्वारा नागरिकों से समान व्यवहार की यह प्रक्रिया समाज में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन तार्किक सामाजिक मूल्यों की स्थापना करती है,जो किसी भी राष्ट्र के जीवन और विकास की आधारभूत आवश्यकता होती है।
परंतु जब समान व्यवहार की यह प्रक्रिया समाज के रूढ़िवादी विचारों,धार्मिक कट्टरता,व्यक्तिगत और राजनीतिक स्वार्थों से बाधित होती है तो इसकी परिणति एक शोषणकारी व्यवस्था के सृजन के रूप में होती है। तब इस शोषण के लिए जिम्मेदार न सिर्फ स्वार्थपूर्ण धार्मिक एवं सामाजिक मूल्य होते हैं बल्कि राज्य भी इस शोषण का संरक्षक बन जाता है।
दरअसल,किसी भी चीज को मुद्दा बनाकर अगर समाज में हिंसा फैलाई जाती है तो इसका राष्ट्रीय एकता पर बुरा असर पड़ना तय है। एक तो हमारे समाज में काफी विविधताएं पहले से ही मौजूद हैं। ऐसे में अगर एक खास वर्ग अपनी चीजों को सर्वोत्तम कहने लगे और उसे दूसरे लोगों को अपनाने के लिए मजबूर करने के लिए हिंसा का सहारा लें तो राष्ट्र की एकता और अखंडता को चोट पहुंचना तय है।
आज एक बड़ा प्रश्न यह है कि धर्म,जाति,भाषा,क्षेत्र आदि के नाम पर समाज को बंटने से कैसे रोका जाए? इसके लिए सबसे पहले तो हमें एक-दूसरे की संस्कृति का सम्मान करना सीखना होगा। परिवार में अलग राय रखने वाले को घर से निकाल नहीं दिया जाता है। यह सही है कि लोग अपनी क्षेत्रीय संस्कृति को बढ़ावा दें। इससे सांस्कृतिक समृद्धि बढ़ेगी। लेकिन यह राष्ट्रीयता की कीमत पर नहीं होना चाहिए।’
हमारे देश में सभी धर्मों के लोग जानते हैं कि उनकी संस्कृति एक है। बौद्ध हों या जैन हों,वैष्णव हों या सिक्ख या फिर ब्रह्यसमाजी, सभी मानते हैं कि उनके पूर्वज एक थे। भले ही बाद में उनके पूर्वजों के जीवन कथा को अलग-अलग मजहब का रंग दे दिया गया?
सबको जोड़ने के लिए ही तीन रंगों के कपड़े को जोड़कर 'तिरंगा'बनाया गया है। वह कोई साधारण कपड़ा नहीं है बल्कि उसे हमने 'राष्ट्रीय एकता' का प्रतीक माना है। इसकी प्रतिष्ठा राष्ट्र की प्रतिष्ठा और इसका अपमान राष्ट्र का अपमान है। इसीलिए इस तिरंगे की शान के लिए आज तक हजारों-लाखों भारतीय अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं। इसी बलिदान का परिणाम है कि आज हमारी राष्ट्रीय एकता के प्रतीक तिरंगा झंडा अपने सर्वोच्च स्थान पर गर्व के साथ फहरा रहा है। हमें अपने देश की एकता व अखंडता पर गर्व है।
51. नारी का सम्मान
नारी का सम्मान सदा होना चाहिए। संस्कृत में एक श्लोक है- 'यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता: (भावार्थ- जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।) किंतु आज हम देखते हैं कि नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे 'भोग की वस्तु' समझकर आदमी 'अपने तरीके' से 'इस्तेमाल' कर रहा है।
यह बेहद चिंताजनक बात है। आइए देखते हैं हम नारी का कैसे सम्मान करें।
नारी का सबसे पवित्र रूप मां के रूप में देखने में आता है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। मां देवकी (कृष्ण) तथा मां पार्वती (गणपति/ कार्तिकेय) के संदर्भ में हम देख सकते हैं इसे।
किंतु बदलते समय के हिसाब से संतानों ने अपनी मां को महत्व देना कम कर दिया है। यह चिंताजनक पहलू है। सब धन-लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं। (सिर्फ) मेरी बीवी व मेरे बच्चे यही आजकल परिवार की परिभाषा रह गई है। फिर बुजुर्ग माता-पिता की सेवा कौन करे? यह सवाल आजकल यक्षप्रश्न की तरह चहुंओर पांव पसारता जा रहा है। नई पीढ़ी को आत्मावलोकन करना चाहिए।
अगर आजकल की लड़कियों पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि ये लड़कियां आजकल बहुत बाजी मार रही हैं। इन्हें हर क्षेत्र में हम आगे बढ़ते हुए देखते हैं। विभिन्न परीक्षाओं की मेरिट लिस्ट में लड़कियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। किसी समय इन्हें कमजोर समझा जाता था, किंतु इन्होंने अपनी मेहनत और मेधा शक्ति के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर ली है। इनकी इस प्रतिभा का सम्मान किया जाना चाहिए।
नारी का सारा जीवन पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में ही बीत जाता है। पहले पिता की छत्रछाया में उसका बचपन बीतता है। पिता के घर में भी उसे घर का कामकाज करना होता है तथा साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखनी होती है। उसका यह क्रम विवाह तक जारी रहता है।
उसे इस दौरान घर के कामकाज के साथ पढ़ाई-लिखाई की दोहरी जिम्मेदारी निभानी होती है, जबकि इस दौरान लड़कों को पढ़ाई-लिखाई के अलावा और कोई काम नहीं रहता है। कुछ नवुयवक तो ठीक से पढ़ाई भी नहीं करते हैं, जबकि उन्हें इसके अलावा और कोई काम ही नहीं रहता है।
विवाह पश्चात तो महिलाओं पर और भी भारी जिम्मेदारी आ जाती है। पति, सास-ससुर, देवर-ननद की सेवा के पश्चात उनके पास अपने लिए समय ही नहीं बचता है। वे कोल्हू के बैल की मानिंद घर-परिवार में ही खटती रहती हैं। संतान के जन्म के बाद तो उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। घर-परिवार, चौके-चूल्हे में खटने में ही एक आम महिला का जीवन कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता।
कई बार वे अपने अरमानों का भी गला घोंट देती हैं घर-परिवार की खातिर। उन्हें इतना समय भी नहीं मिल पाता है वे अपने लिए भी जिएं। परिवार की खातिर अपना जीवन होम करने में भारतीय महिलाएं सबसे आगे हैं।
बच्चों में संस्कार भरने का काम मां (नारी) द्वारा ही किया जाता है। यह तो हम सभी बचपन से सुनते चले आ रहे हैं कि बच्चों की प्रथम गुरु मां ही होती है। मां के व्यक्तित्व-कृतित्व का बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार का असर पड़ता है।
इतिहास उठाकर देखें तो मां पुतलीबाई ने गांधीजी व जीजाबाई ने शिवाजी महाराज में श्रेष्ठ संस्कारों का बीजारोपण किया था। जिसका ही परिणाम है कि शिवाजी महाराज व गांधीजी को हम आज भी उनके श्रेष्ठ कर्मों के कारण आज भी जानते हैं। इनका व्यक्तित्व विराट व अनुपम है।
आजकल महिलाओं के साथ अभद्रता की पराकाष्ठा हो रही है। हम रोज ही प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पढ़ते हैं कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की गई या सामूहिक बलात्कार किया गया। इसे नैतिक पतन ही कहा जाएगा। शायद ही कोई दिन जाता हो, जब महिलाओं के साथ की गई अभद्रता पर समाचार न हो।
इसका प्रमुख कारण यह है कि प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिन-पर-‍दिन अश्लीलता बढ़ती‍ जा रही है। इसका नवयुवकों के मन-मस्तिष्क पर बहुत ही खराब असर पड़ता है। वे इसके क्रियान्वयन पर विचार करने लगते हैं। परिणाम होता है दिल्ली गैंगरेप जैसा जघन्य व घृणित अपराध।
कतिपय 'आधुनिक' महिलाओं का पहनावा भी शालीन नहीं हुआ करता है। इन वस्त्रों के कारण भी यौन-अपराध बढ़ते जा रहे हैं। इन महिलाओं का सोचना कुछ अलग ढंग का हुआ करता हैं। वे सोचती हैं कि हम आधुनिक हैं। हम चाहें जैसे रहें, हमें कौन रोकने-टोकने वाला है? यह विचार उचित नहीं कहा जा सकता है। अपराध होने यह बात उभरकर सामने नहीं आ पाती है कि उनके वस्त्रों के कारण भी यह अपराध हुआ है।
देवी अहिल्याबाई होलकर, मदर टेरेसा, इला भट्ट, महादेवी वर्मा, राजकुमारी अमृत कौर, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गाँधी आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन-वचन व कर्म से सारे जग-संसार में अपना नाम रोशन किया है। कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी का बायां हाथ बनकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इंदिरा गांधी ने अपने दृढ़-संकल्प के बल पर भारत व विश्व राजनीति को प्रभावित किया है। उन्हें लौह-महिला यूं ही नहीं कहा जाता है। इंदिरा गांधी ने पिता, पति व एक पुत्र के निधन के बावजूद हौसला नहीं खोया। दृढ़ चट्टान की तरह वे अपने कर्मक्षेत्र में कार्यरत रहीं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन तो उन्हें 'चतुर महिला' तक कहते थे, क्योंकि इंदिराजी राजनीति के साथ वाक्-चातुर्य में भी माहिर थीं।
अंत में हम यही कहना ठीक रहेगा कि हम हर महिला का सम्मान करें, क्योंकि दुनिया की आधी आबादी के बलबूते पर ही आदमी यहां तक आया है। उसे ठुकराना नहीं चाहिए।
जिस सीढ़ी (महिला) के बलबूते पर आदमी यहां तक आया, उसका तिरस्कार, अपमान कतई उचित नहीं कहा जा सकता है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी, दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है अत: उसे उचित सम्मान दिया जाना चाहिए।

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