विद्युत्
यह एक प्रकार की ऊर्जा है। जिसका उपयोग घरों में विद्युत् बल्ब जगाने, फ्रिज चलाने एवं हीटर चलाने तथा कुछ रासायनिक अभिक्रियों को सम्पन्न कराने आदि में किया जाता है।
विद्युत् धारा एवं विद्युत् परिपथ
चालक पदार्थ में आवेश प्रवाह की दर को विद्युत् धारा कहते है। विद्युत् धारा का एस आई पद्धति में मात्रक एम्पियर होता है। जिसे A से प्रदर्शित करते हैं।
चालक पदार्थ में आवेश प्रवाह की दर को विद्युत् धारा कहते है। विद्युत् धारा का एस आई पद्धति में मात्रक एम्पियर होता है। जिसे A से प्रदर्शित करते हैं।
एक एम्पियर की परिभाषा
यदि किसी चालक में एक सेकेण्ड में आवेश प्रवाह की मात्रा एक कूलाम हो तब चालक में प्रवाहित धारा एक एम्पियर होती है।
अर्थात
I = Q / t
I = प्रवाहित विद्युत् धारा।
t = समय। जो एक सेकण्ड दिया है।
Q = आवेश। जो एक कूलाम दिया है।
अत: एक एम्पियर को निम्न प्रकार परिभाषित कर सकते हैं-
I = 1 /1
= 1 एम्पियर।
आवेश का एस आई मात्रक कूलाम होता है।
एक कूलाम आवेश 6*10^18 इलेक्ट्रानों में पाया जाता है।
एक इलेक्ट्रान में 1.6*10^-19 कूलाम आवेश होता है।
यदि किसी चालक में एक सेकेण्ड में आवेश प्रवाह की मात्रा एक कूलाम हो तब चालक में प्रवाहित धारा एक एम्पियर होती है।
अर्थात
I = Q / t
I = प्रवाहित विद्युत् धारा।
t = समय। जो एक सेकण्ड दिया है।
Q = आवेश। जो एक कूलाम दिया है।
अत: एक एम्पियर को निम्न प्रकार परिभाषित कर सकते हैं-
I = 1 /1
= 1 एम्पियर।
आवेश का एस आई मात्रक कूलाम होता है।
एक कूलाम आवेश 6*10^18 इलेक्ट्रानों में पाया जाता है।
एक इलेक्ट्रान में 1.6*10^-19 कूलाम आवेश होता है।
एमीटर
यह एक ऐसा यंत्र है जो विद्युत् परिपथ में श्रेणी क्रम में जुड़ा होता है तथा विद्युत् धारा को मापने का कार्य करता है।
अल्प मान की विद्युत् धारा को मिलिएम्पियर (mA) तथा माइक्रोएम्पियर में मापा जाता है।
1 mA = 10^ -3 A
1 माइक्रोएम्पियर = 10^-6 A होता है।
यह एक ऐसा यंत्र है जो विद्युत् परिपथ में श्रेणी क्रम में जुड़ा होता है तथा विद्युत् धारा को मापने का कार्य करता है।
अल्प मान की विद्युत् धारा को मिलिएम्पियर (mA) तथा माइक्रोएम्पियर में मापा जाता है।
1 mA = 10^ -3 A
1 माइक्रोएम्पियर = 10^-6 A होता है।
आवेशवाहक
आवेश इलेक्ट्रान, प्रोटॉन अथवा आयन हो सकते हैं। जो परिपथ में पाये जाते हैं। ये चालक के एक सिरे से दूसरे सिरे तक आवेश को ले जाते हैं अत: इन्हें आवेशवाहक कहा जाता है।
आवेश का एस आइ पद्धति में मात्रक कूलाम होता है। जिसे C से दर्शाते हैं।
आवेश इलेक्ट्रान, प्रोटॉन अथवा आयन हो सकते हैं। जो परिपथ में पाये जाते हैं। ये चालक के एक सिरे से दूसरे सिरे तक आवेश को ले जाते हैं अत: इन्हें आवेशवाहक कहा जाता है।
आवेश का एस आइ पद्धति में मात्रक कूलाम होता है। जिसे C से दर्शाते हैं।
चालक पदार्थ
वे पदार्थ जो विद्युत् धारा का चालन करते हैं, चालक पदार्थ कहलाते हैं।
हम धातुओं के बारे में अध्याय तीन में पढ़ चुके हैं ये विद्युत् की सबसे अच्छी चालक होती हैं। जिनमें आवेश वाहकों का कार्य इलेक्ट्रान द्वारा किया जाता है। क्योंकि धातुओं में बहुत अधिक संख्या में मुक्त इलेक्ट्रान पाए जाते हैं। चाँदी विद्युत् की सबसे अच्छी चालक होती है। लेकिन यह मंहगी होती है। अत: परिपथ बनाने में इसे उपयोग में नहीं लेते हैं। इसके अलावा कॉपर भी विद्युत् की अच्छी चालक होती ज्यादातर परिपथों में इसे ही काम में लेते हैं।
वे पदार्थ जिनमें बहुत अधिक संख्या में स्वतंत्र आवेश वाहक होते हैं तथा बाह्य विद्युत् क्षेत्र की उपस्थिति में विद्युत् धारा का चालन करते हैं चालक पदार्थ कहलाते हैं।
वे पदार्थ जो विद्युत् धारा का चालन करते हैं, चालक पदार्थ कहलाते हैं।
हम धातुओं के बारे में अध्याय तीन में पढ़ चुके हैं ये विद्युत् की सबसे अच्छी चालक होती हैं। जिनमें आवेश वाहकों का कार्य इलेक्ट्रान द्वारा किया जाता है। क्योंकि धातुओं में बहुत अधिक संख्या में मुक्त इलेक्ट्रान पाए जाते हैं। चाँदी विद्युत् की सबसे अच्छी चालक होती है। लेकिन यह मंहगी होती है। अत: परिपथ बनाने में इसे उपयोग में नहीं लेते हैं। इसके अलावा कॉपर भी विद्युत् की अच्छी चालक होती ज्यादातर परिपथों में इसे ही काम में लेते हैं।
वे पदार्थ जिनमें बहुत अधिक संख्या में स्वतंत्र आवेश वाहक होते हैं तथा बाह्य विद्युत् क्षेत्र की उपस्थिति में विद्युत् धारा का चालन करते हैं चालक पदार्थ कहलाते हैं।
विद्युत् विभव
बैटरी में दो इलेक्ट्रोड होते हैं। जिन्हें परिपथ से जोड़ा जाता है। प्रत्येक इलेक्ट्रोड पर रासायनिक उर्जा के कारण एक गुण उत्पन्न हो जाता है जिसे विद्युत् विभव कहते हैं। जिसका मान प्रत्येक इलेक्ट्रोड पर अलग-अलग होता है।
बैटरी में दो इलेक्ट्रोड होते हैं। जिन्हें परिपथ से जोड़ा जाता है। प्रत्येक इलेक्ट्रोड पर रासायनिक उर्जा के कारण एक गुण उत्पन्न हो जाता है जिसे विद्युत् विभव कहते हैं। जिसका मान प्रत्येक इलेक्ट्रोड पर अलग-अलग होता है।
विभवान्तर
दोनों इलेक्ट्रोडों के मध्य विभवों का अन्तर विभवान्तर कहलाता है। जिसका एस आइ पद्धति में मात्रक वोल्ट(V) होता है।
किसी परिपथ में विभवान्तर के कारण ही विद्युत् धारा प्रवाहित होती है।
अर्थात किसी परिपथ में आवेश को प्रवाहित करने के लिए बैटरी द्वारा किया गया कार्य विभवान्तर कहलाता है। इसे निम्न प्रकार भी परिभाषित किया जा सकता है-
V = किया गया कार्य(W) / आवेश(Q)
दोनों इलेक्ट्रोडों के मध्य विभवों का अन्तर विभवान्तर कहलाता है। जिसका एस आइ पद्धति में मात्रक वोल्ट(V) होता है।
किसी परिपथ में विभवान्तर के कारण ही विद्युत् धारा प्रवाहित होती है।
अर्थात किसी परिपथ में आवेश को प्रवाहित करने के लिए बैटरी द्वारा किया गया कार्य विभवान्तर कहलाता है। इसे निम्न प्रकार भी परिभाषित किया जा सकता है-
V = किया गया कार्य(W) / आवेश(Q)
एक वोल्ट की परिभाषा
यदि किसी परिपथ में एक कूलाम आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में बैटरी द्वारा किया गया कार्य एक जूल हो तब उन बिन्दुओं के बीच एक वोल्ट विभवान्तर होता है।
यदि किसी परिपथ में एक कूलाम आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में बैटरी द्वारा किया गया कार्य एक जूल हो तब उन बिन्दुओं के बीच एक वोल्ट विभवान्तर होता है।
वोल्टमीटर
यह एक ऐसा यंत्र है जिससे विभवान्तर मापा जाता है। जिसे परिपथ में समांतर क्रम में जोड़ा जाता है।
यह एक ऐसा यंत्र है जिससे विभवान्तर मापा जाता है। जिसे परिपथ में समांतर क्रम में जोड़ा जाता है।
ओम का नियम
इस नियम के अनुसार यदि किसी चालक तार की भौतिक स्थितियों(ताप, दाब, अपवर्तनांक आदि को) को नियत रखा जाए तो चालक में प्रवाहित विद्युत् धारा चालक के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर के समानुपाती होती है।
अर्थात्
भौतिक स्थितियों को नियत रखने पर यदि विभवान्तर बढ़ाया जाता है तो प्रवाहित धारा का मान भी उसी अनुपात में बढ़ जाता है। तथा घटाने पर उसी अनुपात में घट जाता है।
लेकिन इसके लिए आवश्यक शर्त यही है की भौतिक स्थितियां नियत होनी चाहिए।
इसे निम्न प्रकार गणितीय रूप दिया जा सकता है-
V = IR
जहाँ-जहाँ
V = विभवान्तर।
I = विद्युत् धारा।
R = प्रतिरोध।
ओम के नियमानुसार विभवान्तर तथा धारा के मध्य खींचा गया ग्राफ एक सरल रेखा प्राप्त होता है।
प्रतिरोध
विद्युत् धारा के मार्ग में आने वाली बाधा को प्रतिरोध कहा जाता है। प्रतिरोध एक ऐसा अवरोध है जो विद्युत् उर्जा को खर्च करता है। यदि हमें चालक में प्रवाहित धारा तथा विभवान्तर ज्ञात हो तो हम प्रतिरोध भी ज्ञात कर सकते हैं। इसका मात्रक ओम होता है।
हम जानते हैं-
V = IR
अत: R = V/ I
एक ओम
यदि विभवान्तर = 1 वोल्ट तथा प्रवाहित धारा एक एम्पियर हो तब सूत्र से-
R = 1 ओम
परिवर्ती प्रतिरोध
हम जानते हैं की प्रतिरोध विद्युत् धारा को खर्च करता है। अत: हमें धारा परिवर्तित करनी है तो हमें परिपथ में ऐसे प्रतिरोध को काम में लेना पड़ेगा जो परिवर्तित किया जा सके ऐसे प्रतिरोध को परिवर्ती प्रतिरोध कहते हैं। परिवर्ती प्रतिरोध में एक ऐसी युक्ति होती है जिसकी सहायता से प्रतिरोध को घटाया बढाता जा सकता है। परिवर्ती प्रतिरोध की सहायता से धारा के मान को नियंत्रित किया जा सकता है अत: इसे धारा नियंत्रक भी कहते हैं।
हम जानते हैं की प्रतिरोध विद्युत् धारा को खर्च करता है। अत: हमें धारा परिवर्तित करनी है तो हमें परिपथ में ऐसे प्रतिरोध को काम में लेना पड़ेगा जो परिवर्तित किया जा सके ऐसे प्रतिरोध को परिवर्ती प्रतिरोध कहते हैं। परिवर्ती प्रतिरोध में एक ऐसी युक्ति होती है जिसकी सहायता से प्रतिरोध को घटाया बढाता जा सकता है। परिवर्ती प्रतिरोध की सहायता से धारा के मान को नियंत्रित किया जा सकता है अत: इसे धारा नियंत्रक भी कहते हैं।
प्रतिरोध के मान की निर्भरता
1. चालक की लंबाई एवं अनुप्रस्थ का क्षेत्रफल पर
2. पदार्थ की प्रकृति पर
1. चालक की लंबाई एवं अनुप्रस्थ का क्षेत्रफल पर
2. पदार्थ की प्रकृति पर
1. चालक की लंबाई एवं अनुप्रस्थ का क्षेत्रफल पर-
किसी चालक तार का प्रतिरोध उसकी लंबाई बढाने पर बढता है। तथा घटाने पर घटता है।
अथवा प्रतिरोध चालक की लंबाई के समानुपाती होता है। उसके अनुप्रथ काट क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
इसे संशोधित करके निम्न गणितीय रूप में लिखा जा सकता है-
R = p L/A
जहाँ- R चालक का प्रतिरोध, p प्रतिरोधकता समानुपाती नियतांक, L चालक की लंबाई तथा A अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल है।
किसी चालक तार का प्रतिरोध उसकी लंबाई बढाने पर बढता है। तथा घटाने पर घटता है।
अथवा प्रतिरोध चालक की लंबाई के समानुपाती होता है। उसके अनुप्रथ काट क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
इसे संशोधित करके निम्न गणितीय रूप में लिखा जा सकता है-
R = p L/A
जहाँ- R चालक का प्रतिरोध, p प्रतिरोधकता समानुपाती नियतांक, L चालक की लंबाई तथा A अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल है।
प्रतिरोधकता
किसी एकांक लंबाई एवं एकांक अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल वाले चालक का प्रतिरोध ही उस चालक की प्रतिरोधकता कहलाता है। प्रतिरोधकता का एस आई पद्धति में मात्रक ओम गुणा मीटर होता है।
किसी एकांक लंबाई एवं एकांक अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल वाले चालक का प्रतिरोध ही उस चालक की प्रतिरोधकता कहलाता है। प्रतिरोधकता का एस आई पद्धति में मात्रक ओम गुणा मीटर होता है।
2. पदार्थ की प्रकृति पर
किसी चालक का प्रतिरोध उसकी प्रकृति पर भी निर्भर करता है। जैसे- धातुओं एवं मिश्रातुओं का प्रतिरोध बहुत कम होता है।
धातुओं एवं मिश्रातुओं की प्रतिरोधकता बहुत कम होती है। अत: इनका प्रतिरोध भी बहुत कम होता है।
धातुओं एवं मिश्रातुओं की प्रतिरोधकता की कोटी 10^-8 से 10^-6 ओम गुणा मीटर की परास में होती। जबकि रबड़, काँच जैसे विद्युतरोधी पदार्थों की प्रतिरोधकता की कोटी 10^12 से 10^17 ओम गुणा मीटर की परास में होती है।
किसी चालक का प्रतिरोध उसकी प्रकृति पर भी निर्भर करता है। जैसे- धातुओं एवं मिश्रातुओं का प्रतिरोध बहुत कम होता है।
धातुओं एवं मिश्रातुओं की प्रतिरोधकता बहुत कम होती है। अत: इनका प्रतिरोध भी बहुत कम होता है।
धातुओं एवं मिश्रातुओं की प्रतिरोधकता की कोटी 10^-8 से 10^-6 ओम गुणा मीटर की परास में होती। जबकि रबड़, काँच जैसे विद्युतरोधी पदार्थों की प्रतिरोधकता की कोटी 10^12 से 10^17 ओम गुणा मीटर की परास में होती है।
1. श्रेणी क्रम संयोजन
प्रतिरोधों का ऐसा निकाय जिसमें प्रतिरोधों को इस प्रकार जोड़ा जाए कि प्रथम प्रतिरोध का पहला सिरा बैटरी के पहले टर्मिनल से तथा दूसरा सिरा दूसरे प्रतिरोध के पहले सिरे से तथा दूसरे प्रतिरोध का दूसरा सिरा तीसरे प्रतिरोध के पहले सिरे से इसी प्रकार n प्रतिरोधों को इसी प्रकार जोड़ा जा सकता है। n वें प्रतिरोध के दूसरे सिरे को बैटरी के दूसरे टर्मिनल से जोड़कर परिपथ तैयार किया जाता है।
श्रेणी क्रम संयोजन में प्रत्येक प्रतिरोध में प्रवाहित धारा तो एक समान होती है। लेकिन विभवान्तर का मान बदल जाता है।
माना तीन प्रतिरोधों को श्रेणी क्रम में संयोजित किया गया है, जिनका प्रतिरोध R1, R2 तथा R3 है।
माना प्रवाहित धारा का मान I है।
माना तीन प्रतिरोधों को श्रेणी क्रम में संयोजित किया गया है, जिनका प्रतिरोध R1, R2 तथा R3 है।
माना प्रवाहित धारा का मान I है।
अत: प्रतिरोधों के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर-
प्रथम प्रतिरोध के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर-
V1 = IR1
इसी प्रकार दूसरे व तीसरे प्रतिरोध के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर-
V2 = IR2
V3 = IR3
प्रथम प्रतिरोध के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर-
V1 = IR1
इसी प्रकार दूसरे व तीसरे प्रतिरोध के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर-
V2 = IR2
V3 = IR3
I इसलिए नियत है क्योंकि श्रेणी क्रम में सभी प्रतिरोधों में एक समान धारा प्रवाहित होती है।
तीनों प्रतिरोधों के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर बैटरी के विभवान्तर के तुल्य होगा।
अत: तुल्य विभवान्तरV = IR
V = V1 + V2 + V3
उपरोक्त मान रखने पर-
IR = IR1 + IR2 + IR3
IR = I(R1 + R2 + R3)
R = R1 + R2 + R3
तीनों प्रतिरोधों के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर बैटरी के विभवान्तर के तुल्य होगा।
अत: तुल्य विभवान्तरV = IR
V = V1 + V2 + V3
उपरोक्त मान रखने पर-
IR = IR1 + IR2 + IR3
IR = I(R1 + R2 + R3)
R = R1 + R2 + R3
अत: स्पष्ट है की प्रतिरोधों के श्रेणी क्रम में तुल्य प्रतिरोध का मान सभी प्रतिरोधों का योग होता है। यदि प्रतिरोध n होते तब
R = R1 + R2 + R3.......Rn
R = R1 + R2 + R3.......Rn
2, 2 ओम के दो प्रतिरोध श्रेणी क्रम में संयोजित किए गये हैं संयोजन का तुल्य प्रतिरोध क्या होगा?
दिया है-
R1 = 2 ओम
R2 = 2 ओम
ज्ञात करना है तुल्य प्रतिरोध R
हम जानते हैं-
R = R1 + R2
R = 2 + 2
R = 4 ओम
अत: संयोजन का तुल्य प्रतिरोध 4 ओम होगा।
दिया है-
R1 = 2 ओम
R2 = 2 ओम
ज्ञात करना है तुल्य प्रतिरोध R
हम जानते हैं-
R = R1 + R2
R = 2 + 2
R = 4 ओम
अत: संयोजन का तुल्य प्रतिरोध 4 ओम होगा।
2, 2 ओम के दो प्रतिरोध श्रेणी क्रम में संयोजित किए गये हैं संयोजन का तुल्य प्रतिरोध क्या होगा?
दिया है-
R1 = 2 ओम
R2 = 2 ओम
ज्ञात करना है तुल्य प्रतिरोध R
हम जानते हैं-
R = R1 + R2
R = 2 + 2
R = 4 ओम
अत: संयोजन का तुल्य प्रतिरोध 4 ओम होगा।
दिया है-
R1 = 2 ओम
R2 = 2 ओम
ज्ञात करना है तुल्य प्रतिरोध R
हम जानते हैं-
R = R1 + R2
R = 2 + 2
R = 4 ओम
अत: संयोजन का तुल्य प्रतिरोध 4 ओम होगा।
समांतर क्रम संयोजन अथवा पार्श्वक्रम संयोजन
यदि किसी विद्युत् परिपथ में प्रतिरोधों को इस प्रकार संयोजित किया जाए की सभी प्रतिरोधों के पहले सिरे बैटरी के एक टर्मिनल से तथा दूसरे सिरे बैटरी के दूसरे टर्मिनल से तो प्राप्त संयोजन को समांतर अथवा पार्श्वक्रम संयोजन कहते हैं।
पार्श्वक्रम संयोजन में सभी प्रतिरोध के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर V तो समान होता है। लेकिन प्रवाहित धारा अलग-अलग होती है।
प्रथम प्रतिरोध में प्रवाहित धारा-
I1 = V/R1
इसी प्रकार दूसरे व तीसरे प्रतिरोध में प्रवाहित धारा-
I2 = V/R2
I3 = V/R3
इसी प्रकार n वें प्रतिरोध के लिए-
In = VRn होगा।
प्रतिरोधों में प्रवाहित तुल्य धारा I -
I = I1 + I2 + I3....In
उपरोक्त मान रखने पर-
यदि किसी विद्युत् परिपथ में प्रतिरोधों को इस प्रकार संयोजित किया जाए की सभी प्रतिरोधों के पहले सिरे बैटरी के एक टर्मिनल से तथा दूसरे सिरे बैटरी के दूसरे टर्मिनल से तो प्राप्त संयोजन को समांतर अथवा पार्श्वक्रम संयोजन कहते हैं।
पार्श्वक्रम संयोजन में सभी प्रतिरोध के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर V तो समान होता है। लेकिन प्रवाहित धारा अलग-अलग होती है।
प्रथम प्रतिरोध में प्रवाहित धारा-
I1 = V/R1
इसी प्रकार दूसरे व तीसरे प्रतिरोध में प्रवाहित धारा-
I2 = V/R2
I3 = V/R3
इसी प्रकार n वें प्रतिरोध के लिए-
In = VRn होगा।
प्रतिरोधों में प्रवाहित तुल्य धारा I -
I = I1 + I2 + I3....In
उपरोक्त मान रखने पर-
V/R=V/R1+V/R2+V/R3+.......
1/R=1/R1+1/R2+1/R3+.....
1/R=1/R1+1/R2+1/R3+.....
अत: स्पष्ट है पार्श्वक्रम संयोजन में तुल्य प्रतिरोध घट जाता है।
ऊष्मा का तापीय प्रभाव
जब हम विद्युत् उर्जा को उपयोग में लेते हैं तो विद्युत् ऊर्जा का कुछ भाग प्रतिरोधको में खर्च होता है। जबकि शेष भाग ऊष्मा के रूप में वातावरण में क्षयित हो जाता है। जिसे ऊष्मा का तापीय प्रभाव कहते हैं।
वातावरण में क्षयित ऊष्मा H = I^2 Rt होती है।
जहाँ - H क्षयित ऊष्मा, I प्रवाहित धारा ,R प्रतिरोध तथा t समय है।
इसे जूल का तापन नियम भी कहते हैं।
जब हम विद्युत् उर्जा को उपयोग में लेते हैं तो विद्युत् ऊर्जा का कुछ भाग प्रतिरोधको में खर्च होता है। जबकि शेष भाग ऊष्मा के रूप में वातावरण में क्षयित हो जाता है। जिसे ऊष्मा का तापीय प्रभाव कहते हैं।
वातावरण में क्षयित ऊष्मा H = I^2 Rt होती है।
जहाँ - H क्षयित ऊष्मा, I प्रवाहित धारा ,R प्रतिरोध तथा t समय है।
इसे जूल का तापन नियम भी कहते हैं।
विद्युत् शक्ति
किसी बैटरी द्वारा एकांक आवेश को परिपथ में प्रवाहित करने के लिए जो कार्य करना पड़ता है, उसे विद्युत् शक्ति कहते हैं।
इसे P से व्यक्त करते हैं। तथा इसका मात्रक वाट घंटा होता है।
अर्थात्
P = VI
हम जानते हैं-
V = IR
अत: P = I^2R
1 वाट = 1वोल्ट X 1 एम्पियर
= 1VA
विद्युत् शक्ति का बड़ा मात्रक किलोवाट घंटा है। एक किलोवाट घंटा(kWh) एक हजार वाट के बराबर होता है। इसे एक यूनिट भी कहते हैं।
एक kWh में 3.6 गुणा 10 की पॉवर 6 जूल उष्मा होती है।
किसी बैटरी द्वारा एकांक आवेश को परिपथ में प्रवाहित करने के लिए जो कार्य करना पड़ता है, उसे विद्युत् शक्ति कहते हैं।
इसे P से व्यक्त करते हैं। तथा इसका मात्रक वाट घंटा होता है।
अर्थात्
P = VI
हम जानते हैं-
V = IR
अत: P = I^2R
1 वाट = 1वोल्ट X 1 एम्पियर
= 1VA
विद्युत् शक्ति का बड़ा मात्रक किलोवाट घंटा है। एक किलोवाट घंटा(kWh) एक हजार वाट के बराबर होता है। इसे एक यूनिट भी कहते हैं।
एक kWh में 3.6 गुणा 10 की पॉवर 6 जूल उष्मा होती है।
12 वोल्ट विभवान्तर के दो बिन्दुओं के बीच 2 कूलाम आवेश को ले जाने में कितना कार्य करना पड़ता है?
दिया है-
V = 12volt
Q = 2C
किया गया कार्य-
W = VQ
W = 12*2
W = 24J
अत: किया गया कार्य 24 जूल होगा।
दिया है-
V = 12volt
Q = 2C
किया गया कार्य-
W = VQ
W = 12*2
W = 24J
अत: किया गया कार्य 24 जूल होगा।
यदि किसी परिपथ में उत्पन्न वोल्टता 220Volt हो तथा प्रवाहित धारा 1 एम्पियर हो तब परिपथ में प्रयुक्त शक्ति का मान क्या होगा?
दिया है-
I = 1A, V = 220volt
हम जानते है
P = VI
P = 220*1
P = 220W
अत: परिपथ में प्रयुक्त शक्ति का मान 220 वाट होगा।
दिया है-
I = 1A, V = 220volt
हम जानते है
P = VI
P = 220*1
P = 220W
अत: परिपथ में प्रयुक्त शक्ति का मान 220 वाट होगा।
विद्युत् मोटर
यह एक ऐसा उपकरण है जिसमें यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
इसके उपयोग-
1. विद्युत् पंखों
2. रेफ्रीजरेटरों
3. विद्युत् मिश्रकों
4. वाशिंग मशीनों
5. MP3
6.कम्प्यूटरों आदि में किया जाता है।
यह एक ऐसा उपकरण है जिसमें यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
इसके उपयोग-
1. विद्युत् पंखों
2. रेफ्रीजरेटरों
3. विद्युत् मिश्रकों
4. वाशिंग मशीनों
5. MP3
6.कम्प्यूटरों आदि में किया जाता है।
विद्युत् मोटर के प्रमुख अवयव एवं कार्यप्रणाली
शक्तिशाली चुम्बक,आर्मेचर, ब्रुश, विभक्त वलय आदि विद्युत् मोटर के प्रमुख अवयव हैं। आर्मेचर आयताकार होता है। इसे कुण्डली भी कहते हैं। प्रत्येक वलय से कार्बन के बने ब्रुश लगे होते हैं। दोनों ब्रुशों के बीच बैटरी लगी होती है।
प्रारम्भ में आर्मेचर शक्तिशाली ध्रुवों के बीच चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत होता है। जब यह घूर्णन करता है तो यांत्रिक ऊर्जा विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। घूर्णन के दौरान वलय तो आर्मेचर के साथ घूर्णन करती हैं। परंतु ब्रुश घूर्णन नहीं करते हैं।
शक्तिशाली चुम्बक,आर्मेचर, ब्रुश, विभक्त वलय आदि विद्युत् मोटर के प्रमुख अवयव हैं। आर्मेचर आयताकार होता है। इसे कुण्डली भी कहते हैं। प्रत्येक वलय से कार्बन के बने ब्रुश लगे होते हैं। दोनों ब्रुशों के बीच बैटरी लगी होती है।
प्रारम्भ में आर्मेचर शक्तिशाली ध्रुवों के बीच चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत होता है। जब यह घूर्णन करता है तो यांत्रिक ऊर्जा विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। घूर्णन के दौरान वलय तो आर्मेचर के साथ घूर्णन करती हैं। परंतु ब्रुश घूर्णन नहीं करते हैं।
कार्यप्रणाली
प्रारम्भ में आर्मेचर चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत होता है। जब यह घूर्णन करता है। तो इसके प्रथम आधे चक्र के लिए इसमें प्रवाहित धारा की दिशा आधे चक्र के पश्चात पूर्णचक्र के लिए धारा की दिशा की ठीक उल्टी होती है।
यही क्रम लगातार चलता रहता है। तथा अत्यधिक परिमाण की धारा प्राप्त हो जाती है।
प्रारम्भ में आर्मेचर चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत होता है। जब यह घूर्णन करता है। तो इसके प्रथम आधे चक्र के लिए इसमें प्रवाहित धारा की दिशा आधे चक्र के पश्चात पूर्णचक्र के लिए धारा की दिशा की ठीक उल्टी होती है।
यही क्रम लगातार चलता रहता है। तथा अत्यधिक परिमाण की धारा प्राप्त हो जाती है।
प्रत्यावर्ती धारा
ऐसी विद्युत् धारा जो समान काल-अंतरालों के पश्चात अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती हो प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है।
ऐसी विद्युत् धारा जो समान काल-अंतरालों के पश्चात अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती हो प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है।
दिष्ट धारा
ऐसी विद्युत् धारा जिसकी दिशा एवं परिणाम समय के साथ नियत हों दिष्ट धारा कहलाती है।
ऐसी विद्युत् धारा जिसकी दिशा एवं परिणाम समय के साथ नियत हों दिष्ट धारा कहलाती है।
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