प्रकाश पाठ के नोट्स

प्रकाश

प्रकृति में पाया जाने वाला उर्जा का प्रमुख स्रोत सूर्य का प्रकाश है। सूर्य से प्रकाश पृथ्वी पर तरंगों अथवा विद्युत् चुम्बकीय तरंगों  के रूप में गमन करता है इन तरंगों को किरण कहते हैं। जिनकी  निर्वात में चाल तीन गुणा दस की घात आठ मीटर प्रति सेकंड होती है। ये किरणें पृथ्वी पर पदार्थों से टकराकर निम्न तीन प्रकार की घटनाएँ प्रदर्शित करती हैं-
1. प्रकाश का परावर्तन
2. प्रकाश का अपवर्तन
3. प्रकाश का विवर्तन
1. प्रकाश का परावर्तन

प्रकाश की किरणों का किसी परावर्तक पृष्ठ से टकराकर वापस उसी माध्यम में लौटने की घटना को प्रकाश का परावर्तन कहा जाता है।
परावर्तन के नियम

1. प्रकाश के परार्वतन की घटना के दौरान आपतित किरण,परावर्तित किरण तथा अभिलम्ब तीनों एक ही तल में होते हैं यह परावर्तन का प्रथम नियम है।
2. आपतन कोण(i) तथा परावर्तन कोण(r) बराबर होते हैं।
ऐसा पृष्ठ जो आपतित प्रकाश की किरणों को परावर्तित करके वापस उसी माध्यम में भेज देता है, परावर्तक पृष्ठ कहलाता है।
माध्यम जैसे जल, वायु, निर्वात आदि।
निर्वात ऐसा माध्यम होता है जहाँ वायु अनुपस्थित होती है।
अलग-अलग माध्यमों में प्रकाश की चाल अलग-अलग होती है।
निर्वात में प्रकाश की चाल सर्वाधिक होती है।
निर्वात में विद्युत् चुम्बकीय तरंगों की चाल 3×10^8 मीटर प्रति सेकेण्ड होती है।
प्रकाश भी निर्वात में विद्युत् चुम्बकीय तरंगों के रूप में गमन करता है अत: प्रकाश की चाल भी निर्वात मे 3×10 ^ 8 होती है।
2. प्रकाश का अपवर्तन

जब प्रकाश किसी एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करता है तो चाल में परिवर्तन के कारण अपने पथ से विचलित हो जाता है, इसे प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं।
अपवर्तन के नियम
इसके दो नियम हैं-
(1.) आपतित किरण, अभिलम्ब तथा अपवर्तित किरण तीनों एक ही तल में होती हैं।
(2.) आपतन कोण तथा अपवर्तन कोण बराबर होते हैं।
3. प्रकाश का  विवर्तन

प्रकाश की किरणों का किसी अवरोधक से टकराकर उसके छाया क्षेत्र में प्रवेश करना विवर्तन कहलाता है।
परार्वतन के नियम सभी प्रकार के पृष्ठों के लिए लागू होते हैं।
प्रकाश के कारण ही हमें वस्तुएं दिखाई देती हैं। प्रकाश की किरणें वस्तु से टकराकर हमारी आँखो में प्रवेश कर जाती हैं जहाँ रैटिना पर वस्तु का प्रतिबिंब बन जाता है।
हम जब दर्पण के सामने खड़े होते हैं तो हमसे प्रकाश किरणें टकराकर दर्पण में प्रवेश करती हैं तो हमारा प्रतिबिंब दर्पण में बन जाता है। प्रतिबिंब से किरणें हमारी आँखों में प्रवेश करती हैं तो हमारी आँखों में प्रतिबिंब(चित्र) बन जाता है। जो हमें दिखाई देता है।
दर्पण
दर्पण दो पदार्थों के संयोजन से बना होता है। पैलेडियम तथा परावर्तक पदार्थ।
पैलेडियम पर परावर्तक पदार्थ की पॉलिस हुई होती है। दर्पण दो प्रकार का होता है-
1. समतल दर्पण
2. गोलीय दर्पण
1. समतल दर्पण
समतल दर्पण से बने प्रतिबिंब की निम्न विशेषताएं होती हैं-
(1.) समतल दर्पण से बना प्रतिबिंब हमेशा वस्तु के आकार का होता है।
(2.) समतल दर्पण से बना प्रतिबिंब हमेशा सीधा तथा आभासी होता है।
(3.) प्रतिबिंब उतनी ही दूरी पर बनता है जितनी दूरी पर बिंब(वस्तु) रखा होता है।
2. गोलीय दर्पण
ये भी दो प्रकार होते हैं-
1. उत्तल दर्पण: वह गोलिय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ बाहर की ओर होता है। उत्तल दर्पण कहलाता है।
2. अवतल दर्पण: वह गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ अन्दर की ओर धंसा होता है। अवतल दर्पण कहलाता है।
कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं

ध्रुव
गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ का केंद्र बिंदु दर्पण का ध्रुव कहलाता है।
वक्रता केंद्र
दर्पण को गोले का कटा हुआ भाग माना जा सकता है। गोले का केंद्र दर्पण का वक्रता केंद्र कहलाता है।

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वक्रता त्रिज्या
ध्रुव तथा वक्रता केंद्र के मध्य की दूरी दर्पण की वक्रता त्रिज्या कहलाती है।
मुख्य अक्ष
वक्रता केंद्र तथा ध्रुव को मिलाने वाली रेखा दर्पण की मुख्य अक्ष कहलाती है।
अवतल दर्पण की मुख्य फोकस
जब प्रकाश की किरणों अवतल दर्पण पर मुख्य अक्ष के समांतर आपतित होती हैं तो परावर्तन के पश्चात ये मुख्य अक्ष के जिस बिन्दु पर मिलती हैं उस बिन्दु को अवतल दर्पण का मुख्य फोकस कहते हैं।
उत्तल दर्पण की मुख्य फोकस
जब प्रकाश की किरणें अवतल दर्पण पर मुख्य अक्ष के समान्तर आपतित होती हैं तो परावर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष के जिस बिन्दु पर मिलती हुई प्रतीत होती हैं। उस बिन्दु को उत्तल दर्पण का मुख्य फोकस कहते हैं
फोकस दूरी
ध्रुव तथा मुख्य फोकस के बीच की दूरी फोकस दूरी कहलाती है।
वक्रता त्रिज्या तथा फोकस दूरी में संबन्ध
फोकस दूरी वक्रता त्रिज्या की आधी होती है। फोकस दूरी को f से दर्शाते हैं तथा वक्रता त्रिज्या को R से दर्शाते हैं अत: इनके बीच निम्न संबन्ध होता है-
R = 2f
एक अवतल दर्पण की फोकस दूरी 5 सेमी. है तो वक्रता त्रिज्या क्या होगी?
दिया है-
f = -5cm
R = ?
R = 2f
R = 2*(-5) = -10cm
अत: उस दर्पण की वक्रता त्रिज्या दस सेमी. होगी।
दर्पण का द्वारक
दर्पण की वृत्ताकार सीमारेखा का व्यास दर्पण का द्वारक कहलाता है।
गोलीय दर्पणों द्वारा बने प्रतिबिंबो की विशेषताएं
अवतल दर्पणों द्वारा बने प्रतिबिंब
इसके लिए निम्न स्थितियां संभव हैं-
1. जब वस्तु अनन्त पर हो|
2. जब वस्तु वक्रता केंद्र से परे हो|
3. जब वस्तु वस्तु वक्रता केंद्र पर हो|
4. जब वस्तु वक्रता केंद्र तथा मुख्य फोकस के बीच हो|
5. जब वस्तु मुख्य फोकस पर हो| 1. जब वस्तु अनन्त पर हो-
तब प्रतिबिंबिब मुख्य फोकस पर बनता है।
जो बिन्दु के आकार का वास्तविक तथा उल्टा होता है।

2. जब वस्तु वक्रता केंद्र से परे हो-
तब प्रतिबिंब मुख्य फोकस तथा वक्रता केंद्र के बीच बनता है। जो वस्तु के साइज से छोटा वास्तविक तथा उल्टा होता हैl
4. जब वस्तु वक्रता केंद्र तथा मुख्य फोकस के बीच हो-
तब प्रतिबिंब वक्रता केंद्र से परे बनता है। वस्तु के साइज से बड़ा तथा वास्तविक, उल्टा होता हैl
5. जब वस्तु मुख्य फोकस पर हो-
तब प्रतिबिंब अनंत पर बनता है। जो वस्तु के साइज से अत्यधिक बडा तथा आभासी, सीधा होता है।
जब वस्तु वक्रता केंद्र पर हो तब अवतल दर्पण के लिए प्रतिबिंब की स्थिति,  आकार तथा प्रकृति कैसी होगी?
स्थिति - वक्रता केंद्र पर ।
आकार - वस्तु के बराबर।
प्रकृति - वास्तविक एवं उल्टा।
अवतल दर्पणों के उपयोग
इसके निम्न उपयोग हैं-
1. वाहनों में हैडलाइट से शक्तिशाली किरण पुंज प्राप्त के लिए।
2. टॉर्च एवं सर्चलाइटों में।
3. शेविंग दर्पणों में।
4. चिकित्सालयों में। दाँतों को बडा देखने के लिए।
5. सौर भट्टियों में प्रकाश को एक जगह केंद्रित करने में।
2. उत्तल दर्पणों द्वारा बने प्रतिबिंब
इसके लिए निम्न दो स्थितियां संभव हैं-
1. जब वस्तु अनंत पर हो|
2. जब वस्तु अनंत तथा ध्रुव के बीच हो|
1. जब वस्तु अनंत पर हो-
तब प्रतिबिंब फोकस पर दर्पण के पीछे बनता है। जो बिन्दु के साइज का आभासी तथा सीधा होता है।
2. जब वस्तु अनंत तथा ध्रुव के बीच हो-
तब प्रतिबिंब ध्रुव तथा मुख्य फोकस के बीच बनता है। जो वस्तु के साइज से छोटा तथा आभासी एवं सीधा होता हai
उत्तल दर्पणों के उपयोग
इसका उपयोग  वाहनों मे पीछे के दृश्य को देखने के लिए किया जाता है।
गोलीय दर्पणों के लिए चिन्ह परिपाटी एवं आवर्धन
गोलीय दर्पण के लिए ग्राफीय चिन्ह परिपाटी काम में ली जाती जाती है। तथा समस्त दूरियां ध्रुव से मापी जाती हैं।
ध्रुव से ऊपर तथा दाँयी ओर मापी गयी दूरियां + में मापी जाती हैं। जबकि ध्रुव से नीचे की ओर मापी गयी दूरियां तथा बायीं ओर मापी गयी दूरियां -  में मापी जाती हैं।
दर्पण सूत्र
दर्पण की फोकस दूरी(f), बिंब दूरी(u) तथा प्रतिबिंब दूरी(v) के मध्य संबंध दर्पण सूत्र कहलाता है। जो निम्न होता है।
यह एक ऐसा सूत्र है जिसमें दिये गये दो मानों को रखकर तीसरे का मान निकाल लेते है। जिसके आधार पर प्रतिबिंब की स्थिति, साइज का पता चल जाता है।
1/u +1/v =1/f
आवर्धन
आवर्धन की सहायता से यह पता चलता है की कोई प्रतिबिंब बिंब की अपेक्षा आकार में बडा है। अथवा छोटा हैl
प्रतिबिंब की ऊँचाई h' तथा बिंब की ऊँचाई h का अनुपात आवर्धन कहलाता है। अथवा प्रतिबिंब दूरी तथा बिंब दूरी का अनुपात आवर्धन कहलाता है। आवर्धन का मान +1 से बड़ा होने पर प्रतिबिंब बिंब से बड़ा होता है जबकि कम होने पर प्रतिबिंब छोटा होता है।
अपवर्तन
अपवर्तन का कारण प्रकाश के वेग में परिवर्तन होता है।
जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करता है तो प्रकाश की चाल परिवर्तित हो जाती है। जिसके कारण प्रकाश की किरण या तो अभिलंब से दूर हट जाती है या फिर अभिलंब की ओर झुक जाती है। यह माध्यमों के अपवर्तनांकों पर निर्भर करता है। यदि प्रकाश कम अपवर्तनांक वाले माध्यम से अधिक अपवर्तनांक वाले माध्यम में प्रवेश करता है तो प्रकाश की चाल पहले माध्यम की तुलना में दूसरे माध्यम में घट जाएगी जिससे प्रकाश की किरणें अभिलंब की ओर झुक जाएंगी।
यदि प्रकाश अधिक अपवर्तनांक वाले माध्यम से कम अपवर्तनांक वाले माध्यम में प्रवेश करता है तो प्रकाश की चाल बढ जाएगी। जिससे प्रकाश की किरणें अभिलंब से दूर हट जाएंगी।
अत: निष्कर्ष निकलता है की प्रकाश की चाल माध्यम के अपवर्तनांक पर निर्भर करती है।
अपवर्तनांक
पदार्थ का अपवर्तनांक प्रकाश की चाल में उत्पन्न बाधा होती है। अपवर्तनांक जितना अधिक होगा प्रकाश का वेग उतना ही कम होगा। अपवर्तनांक घटने या बढ़ने पर प्रकाश का वेग भी घट बढ जाता है।
निर्वात का अपवर्तनांक सबसे कम, उससे अधिक वायु का तथा उससे अधिक जल का होता है।
प्रकाश की सबसे धीमी चाल किस माध्यम में होगी?
हम जानते हैं की जिस माध्यम का अपवर्तनांक सर्वाधिक होता है। प्रकाश की चाल सबसे कम उसी माध्यम में होती है। अत: प्रकाश की सबसे धीमी चाल हीरे में होगी। जो कार्बन का अपररूप है। तथा प्रकृति में सर्वाधिक कठोर पदार्थ है।
कम अपवर्तनांक वाले माध्यम को विरल माध्यम कहते हैं। जबकि अधिक अपवर्तनांक वाले माध्यम को सघन माध्यम कहते हैं। विरल माध्यम में प्रकाश की चाल अपेक्षाकृत सघन माध्यम से अधिक होती है। क्योंकि विरल माध्यम का अपवर्तनांक सघन से कम होता है।
जल की तली में वस्तु अपनी वास्तविक स्थिति से ऊँची ऊठी हुई दिखाई देती है क्यों?
जब हम जल के निकट खड़े होते हैं तो प्रकाश की किरणें तली से टकराकर हमारी आँखों में प्रवेश करती हैं। ये किरणें सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती हैं अत: अभिलंब से दूर हट जाती हैं। जिससे हमें तली अपनी वास्तविक स्थिति से उठी हुई दिखाई देती है।
गोलीय लैंसों द्वारा अपवर्तन
दो पृष्ठों से घिरा हुआ पारदर्शी माध्यम लैंस कहलाता है। यदि पृष्ठ समतल हैं तो लैंस समतल लैंस कहलाता है। यदि पृष्ठ गोलीय हैं तो लैंस गोलीय लैंस कहलाता है। गोलीय लैंस का कम से कम एक पृष्ठ गोलीय होना चाहिए अन्यथा वह गोलीय लैंस नहीं कहलाएगा।
गोलीय लैंसो से संबंधित कुछ मुख्य परिभाषाएं
उत्तल लैंस
वह लैंस जिसके दोनों पृष्ठ बाहर की ओर उभरे हुए होते हैं, उत्तल लैंस कहलाता है। चूँकि उत्तल लैंस में दो उत्तल पृष्ठ होते हैं। इसलिए इसे द्वि-उत्तल लैंस भी कह सकते हैं। उत्तल लैंस किनारों से पतले जबकि बीच में से मोटे होते हैं। इसलिए प्रकाश को किनारों की तुलना में बीच में से गुजरने में अधिक समय लगता है। उत्तल लैंस प्रकाश की किरणों को एक बिन्दु पर केंद्रित कर देता है। इसलिए इसे अभिसारी लैंस भी कहा जाता है।
अवतल लैंस
दो अवतल पृष्ठों से घिरा हुआ पारदर्शी माध्यम अवतल लैंस कहलाता है। यह किनारों की अपेक्षा बीच में से पतला होता है।
यह आपतित प्रकाश की किरणों को फैला देता है अत: इसे अपसारी लैंस भी कहा जाता है।
वक्रता केंद्र
लैंस में दो गोलीय पृष्ठ होते हैं। प्रत्येक पृष्ठ को गोले का कटा हुआ भाग माना जा सकता है। गोले का केंद्र वक्रता केंद्र कहलाता है। लैंसो में इनकी संख्या दो होती है।
प्रकाशिक केंद्र
लैंस का केंद्रीय बिन्दु प्रकाशिक केंद्र कहलाता है।
मुख्य अक्ष
लैंस के वक्रता केंद्रों को मिलाने वाली रेखा लैंस की मुख्य अक्ष कहलाती है।
द्वारक
लैंस की वृताकार रूपरेखा का प्रभावी व्यास लैंस का द्वारक कहलाता है।
पतले लैंस
ऐसा लैंस जिसका द्वारक उसकी व्रकता त्रिज्या की तुलना में बहुत कम हो पतला लैंस कहलाता है।
लैंस का मुख्य फोकस
1. उत्तम लैंस का मुख्य फोकस
जब प्रकाश की किरणें किसी उत्तल लैंस पर मुख्य अक्ष के समांतर आपतित होती हैं तो अपवर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष के जिस बिन्दु पर केन्द्रित होती हैं, उसे उत्तल लैंस का मुख्य फोकस कहते हैं।
2. अवतल लैंस का मुख्य फोकस
जब प्रकाश की किरणें किसी अवतल लैंस पर मुख्य अक्ष के समांतर आपतित होती हैं तो अपवर्तन के पश्चात् ये किरणें मुख्य अक्ष के जिस बिन्दु पर केंद्रित होती हुई प्रतीत होती हैं उस बिन्दु को मुख्य फोकस कहते हैं
लैंसों में मुख्य फोकसों की संख्या दो होती है।
फोकस दूरी
लैंस के प्रकाशिक केंद्र से मुख्य फोकस की दूरी फोकस दूरी कहलाती है। लैंसो में फोकस दूरियां भी दो होती हैं जिन्हें क्रमशः f1 व f2 से व्यक्त करते हैं।
वक्रता केंद्रों को 2F1 तथा 2F2 से तथा प्रकाशिक केंद्र को O से व्यक्त करते है
उत्तल लैंस द्वारा बने प्रतिबिंब
1. जब वस्तु अनंत पर हो- तब प्रतिबिंब f2 पर बनता है। जो बिन्दु के साइज का, वास्तविक तथा उल्टा होता है।
2. जब वस्तु 2f1 से परे हो- तब प्रतिबिंब f2 तथा 2f2 के बीच बनता है जो वस्तु से छोटा, वास्तविक तथा उल्टा होता है।
3. जब वस्तु 2f1 पर हो- तब 2f2 पर बनता है। जो वस्तु के साइज का, वास्तविक तथा उल्टा होता है।
4. जब वस्तु f1तथा 2f1 के बीच हो- तब प्रतिबिंब 2f2 से परे बनता है। जो वस्तु से बड़ा, वास्तविक तथा उल्टा होता है।
5. जब वस्तु फोकस f1 तथा प्रकाशिक केंद्र o के बीच हो- तब प्रतिबिंब लैंस के उस तरफ बनता है जिस तरफ बिंब होता है। जो वस्तु(बिंब) से अत्यधिक बड़ा है। तथा आभासी तथा सीधा होता है।
अवतल लैंसों द्वारा बने प्रतिबिंब
1. जब वस्तु अनंत पर हो- तब प्रतिबिंब फोकस f1 पर बनता है। जो बिन्दु के आकार का, आभासी तथा सीधा होता है।
2. अनंत तथा लैंस के प्रकाशिक केंद्र O के बीच हो- तब प्रतिबिंब फोकस F1 तथा प्रकाशिक केंद्र O के बीच बनता है जो वस्तु से छोटा, आभासी तथा सीधा होता है।
     
गोलीय लैंसों के लिए चिन्ह परिपाटी वही काम में ली जाती है। जो दर्पणों के लिए काम आती है। दर्पणों में समस्त दूरियां ध्रुव से मापते हैं। इनमें प्रकाशिक केंद्र से मापते है।
आवर्धन m
h' प्रतिबिंब की ऊँचाई, h बिंब की उँचाई।
v प्रकाशिक केंद्र से प्रतिबिंब की दूरी, u प्रकाशिक केंद्र से बिंब की दूरी।
उत्तल लैंसों के लिए फोकस दूरी धनात्मक जबकि अवतल लैंसों के लिए ऋणात्मक ली जाती है।
लैंस क्षमता
किसी लैंस द्वारा प्रकाश की किरणों को फैलाने अथवा एकत्र करने की मात्रा को लैंस क्षमता कहते हैं। अथवा किसी लैंस द्वारा प्रकाश की किरणों को अपसरण अथवा अभिसरण करने की क्षमता को लैंस क्षमता कहते हैं।
इसे P से व्यक्त करते हैं।
P = 1 / f
f = लैंस की फोकस दूरी।
लैंस क्षमता का SI मात्रक डाइऑप्टर होता है।
यदि किसी लैंस की फोकस दूरी एक मीटर हो तब उसकी लैंस शक्ति एक डाइऑप्टर होती है। डाइऑप्टर को D से व्यक्त करते हैं।

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