अम्ल और क्षार

अम्ल और क्षार

• अम्ल स्वाद में खट्टे होते हैं तथा यह नीले लिटमस पत्र को लाल कर देते है।


• क्षार स्वाद में कड़वे होते हैं तथा यह लाल लिटमस पत्र को नीला कर देते हैं।
• अम्ल जलीय विलयन में हाइड्रोजन आयन देते हैं जबकि क्षार जलीय विलयन मैं हाइड्रॉक्साइड आयन देते हैं।
• लिटमस पत्र एक प्राकृतिक सूचक होता है जो अम्ल एवं क्षार की पहचान कराता है।
संश्लेषित सूचक मेथिल ऑरेंज अम्लीय माध्यम में लाल रंग देता है जबकि फीनाल्फथेलिन क्षारीय माध्यम में गुलाबी रंग देता है।
लिटमस विलयन बैंगनी रंग का रंजक होता है जो थैलोफाइटा समूह के लिचेन पौधे से निकलता है यह न तो अम्ल होता है और न ही क्षार इस विलयन का उपयोग भी अम्ल तथा क्षार की पहचान करने में किया जाता ह ।
• हल्दी भी एक प्राकृतिक सूचक है जो अम्ल एवं क्षार की पहचान कराती है जब श्वेत कपड़े पर लगे सब्जी के धब्बे क्षारीय प्रकृति के साबुन से साफ किए जाते हैं तो वे साफ नहीं होते हैं क्योंकि वे धब्बे क्षारीय प्रकृति के हैं अत: उनके प्रभाव को समाप्त करने के लिए धब्बे पर अम्ल रगड़ते है जिससे वे आसानी से साफ हो जाते हैं क्योंकि अम्ल तथा क्षार एक-दूसरे के प्रभाव को समाप्त कर देते हैं।
• यदि कोई व्यक्ति अम्लता से पीड़ित है तो उसे बैंकिंग सोडे को उपचार हेतु काम में लेना चाहिए क्योंकि यह क्षारीय प्रकृति का होता है जो अम्ल के प्रभाव को समाप्त कर देता है।
• कुछ अन्य प्राकृतिक पदार्थ जैसे लाल पत्ता गोभी, पिटुनिया एवं जेरानियम जैसे फूलों की रंगीन पंखुड़ियां किसी विलयन में अम्ल एवं क्षारक की उपस्थिति को सूचित करती हैं इन्हें अम्ल - क्षारक सूचक कहते हैं।


कुछ अम्लों के प्राकृतिक स्रोत
संतरा एवं नीबू में सिट्रिक अम्ल होता है।
•सिरका में एसिटिक अम्ल होता है।
•टमाटर में आॅक्जैलिक अम्ल होता है।
• इमली में टार्टरिक अम्ल होता है।
• दही में लैक्टिक अम्ल होता है। दूध में लेक्टोज शर्करा उपस्थित होती है, इसका लेक्टिक अम्ल में परिवर्तन होने पर दही का निर्माण होता है।
• चींटी व नेटल के डंक में मेथैनोइक अम्ल होता है।
हमारे मुँह में लार ग्रन्थियों से निकलने वाली लार क्षारीय प्रकृति की होती है।
1.गंधीय सूचक
ऐसे पदार्थ जिनकी गंध अम्लीय या क्षारीय  माध्यम में बदल जाती है उन्हें गंधीय सूचक कहते हैं।
अम्ल और क्षार की अभिक्रिया
आइए इसे एक प्रयोग द्वारा समझें|
याद रहे की की हाइड्रोजन गैस फट-फट की ध्वनि के साथ जलती है।
एक परख नली में 5ml तनु सल्फ्यूरिक अम्ल लेते हैं इसमें दानेदार जिंक(जस्ता) डालते हैं जिंक के दाने सल्फ्यूरिक अम्ल से क्रिया कर गैस मुक्त करते हैं इस गैस को साबुन के पानी से प्रवाहित करने पर बुलबुले बनते हैं। जलती हुई मोमबत्ती को बुलबुलों के पास ले जाने पर ये बुलबुले फट-फट की ध्वनि के साथ फटते हैं तथा हाइड्रोजन गैस का दहन होने लगता है
अतः स्पष्ट है कि बुलबुलों में हाइड्रोजन गैस उपस्थित थी| इसी प्रकार क्षार भी धातु से क्रिया करके हाइड्रोजन गैस मुक्त करते हैं अतः स्पष्ट है कि अम्ल तथा क्षार धातु से क्रिया कर संगत लवण बनाते हैं तथा हाइड्रोजन गैस मुक्त करते है।
3.धातु कार्बोनेट तथा धातु हाइड्रोजनकार्बोनेट की अम्ल के साथ क्रिया
धातु कार्बोनेट तथा धातु हाइड्रोजनकार्बोनेट अम्लों से क्रिया करके संगत लवण, कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल बनाते हैं।
4. अम्ल एवं क्षारकों में परस्पर क्रिया
अम्ल एवं क्षारक आपस में क्रिया कर लवण तथा जल बनाते हैं इस अभिक्रिया को उदासीनीकरण अभिक्रिया कहते हैं।
उदासीनीकरण अभिक्रिया को इस प्रकार लिख सकते हैं
अम्ल + क्षारक --> लवण + जल
अम्ल व क्षारक परस्पर क्रिया कर एक दूसरे के प्रभाव को समाप्त कर उदासीन विलयन बनाते हैं। अतः इस अभिक्रिया को उदासीनीकरण अभिक्रिया कहते हैं क्या वास्तव में अम्ल एवं क्षारक एक - दूसरे के प्रभाव को समाप्त कर देते हैं?
5. अम्लों के साथ धात्विक ऑक्साइडों की क्रिया
अम्लों की धात्विक ऑक्साइडों से क्रिया कराने पर ये अम्ल एवं क्षारक की अभिक्रिया की तरह लवण तथा जल बनाते है। चूँकि क्षार एवं अम्ल की अभिक्रिया से लवण व जल बनता है अत: निष्कर्ष निकलता है की धात्विक ऑक्साइड क्षार होते हैं जो अम्लों से क्रिया कर लवण तथा जल बनाते हैं।
अम्लो  एवं क्षारकों में समानतायें
सभी अम्ल धातुओं से क्रिया कर हाइड्रोजन गैस मुक्त करते हैं। अम्लीय विलयन विद्युत् धारा का चालन करता है जिसका कारण अम्ल में उपस्थित हाइड्रोजन धन आयन होते जबकि क्षारीय विलयन विद्युत् धारा का चालन नही करते क्योंकि उनमें हाइड्रोजन धनायनों का अभाव होता है।
अत: निष्कर्ष निकलता है कि जिन यौगिकों में हाइड्रोजन धनायन उपस्थित होते हैं वे सभी यौगिक अम्लीय प्रकृति के होते हैं।
क्षारकों को जल में घोलने पर निम्न अभिक्रिया होती है
क्षार जल में हाइड्रॉक्साइड आयन देते हैं। सभी क्षारक जल में नहीं घुलते वे क्षारक जो जल में घुलनशील होते हैं क्षार कहलाते हैं ये साबुन की तरह स्पर्श होते हैं। इन्हें छूना या चखना नहीं चाहिए क्योंकि ये अत्यधिक हानिकारक होते हैं।
चूँकि अम्ल जलीय विलयन में हाइड्रोजन (H+) आयन देते हैं तथा क्षारक जलीय विलयन में हाइड्रोक्साइड(OH-) आयन देते हैं अतः उदासीनीकरण अभिक्रिया को इस प्रकार लिख सकते हैं -
अम्ल + क्षारक --> लवण + जल
जल में 'अम्ल क्षारक' मिलाने पर अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न होती है। अतः यह एक उष्माक्षेपी प्रक्रम है।
क्या वास्तव में जल में अम्ल या क्षारक मिलाने पर ऊष्मा उत्पन्न होती है आइए इसे एक प्रयोग द्वारा समझें
बीकर में 10ml जल लेकर इसे हिलाते हुए इसमें धीरे-धीरे अम्ल या क्षार की कुछ बूंदें डालते हैं तो देखते हैं कि कांच का बीकर गर्म होने लगता है चूँकि उष्माक्षेपी अभिक्रिया में ऊष्मा उत्पन्न होती है अतः यह एक उष्माक्षेपी प्रक्रम है।
जल में अम्ल या क्षारक मिलाने पर प्रति इकाई आयतन में आयनों की संख्या में कमी आती है इस प्रक्रिया को तनुकरण कहते हैं तथा इस प्रक्रिया में अम्ल या क्षार तनुकृत होते हैं।
अम्ल एवं क्षारकों के विलयन की प्रबलता
सूचकों का उपयोग कर हम यह ज्ञात कर सकते हैं कि कोई विलयन अम्ल है अथवा क्षार लेकिन वह प्रबल है अथवा दुर्बल इसकी जाँच सूचकों की सहायता से नहीं कर सकते।
किसी विलयन में उपस्थित हाइड्रोजन आयनों की सांद्रता ज्ञात करने के लिए एक स्केल विकसित किया गया जिसे pHस्केल कहते हैं। यह सार्वत्रिक सूचकों का मिश्रण होता है। pHस्केल हाइड्रोजन आयन की विभिन्न सांद्रताओं को विभिन्न रंगों से प्रदर्शित करता है। जिससे यह पता चलता है कि कोई विलयन प्रबल है अथवा दुर्बल। pHमें P सूचक है जो जर्मन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ शक्ति होता है।
यदि किसी विलयन के pH का मान 7  से कम है तो वह विलयन अम्लीय pH का मान 7  है तो उदासीन तथा pHमान 7  से अधिक है तो विलयन क्षारीय होता है।
pH मान घटने पर अम्लीय प्रकृति में वृद्धि होती है तथा क्षारीय प्रकृति में कमी आती है। pHमान जितना कम होता है अम्ल उतना ही प्रबल होता है।
pH मान बढ़ने पर क्षारीय प्रकृति में वृद्धि होती है। तथा अम्लीय प्रकृति में कमी आती है। pHमान जितना अधिक होता है क्षार उतना ही प्रबल होता है।
कुछ मुख्य पदार्थों के pHमान
जठर रस का pHमान लगभग 1.2 होता है। अत: यह प्रबल अम्ल है।
नींबू के रस का pHमान लगभग 2.2 होता है। अत: यह दुर्बल अम्ल है।
शुद्ध जल का pHमान 7.4 होता है। अत: यह लगभग उदासीन है।
रक्त का pHमान 7.4 होता है।
मिल्क ऑफ़ मैग्नीशिया का pHमान 10 होता है। अत: यह दुर्बल क्षार है।
सोडियम हाइड्रॉक्साइड का pHमान 14 होता है। अत: यह प्रबल क्षार है।
लवणों का pHमान
लवणों का pHमान अभिक्रिया में भाग लेने वाले अम्ल एवं क्षारकों की प्रबलताओं पर निर्भर करता है। यदि अभिक्रिया में भाग लेने वाले अम्ल एवं क्षार दोनों प्रबल हों तो उदासीन लवण का निर्माण होता है। प्रबल अम्ल एवं दुर्बल क्षार की क्रिया से प्राप्त लवण अम्लीय होता है। तथा प्रबल क्षार एवं दुर्बल अम्ल की क्रिया से प्राप्त लवण क्षारीय होता है।
अम्ल तथा क्षारकों की प्रबलता
अम्ल तथा क्षारकों की प्रबलता विलयन में उपस्थित क्रमश: हाइड्रोजन आयनों तथा हाइड्रॉक्साइड आयनों पर निर्भर करती है।
विलयन (जल) में अधिक संख्या में हाइड्रोजन आयन देने वाले अम्ल, प्रबल अम्ल तथा कम संख्या में हाइड्रोजन आयन देने वाले अम्ल, दुर्बल अम्ल कहलाते हैं।
विलयन में अधिक संख्या में हाइड्रॉक्साइड आयन देने वाले क्षार, प्रबल क्षार तथा कम संख्या में हाइड्रॉक्साइड आयन देने वाले क्षार, दुर्बल क्षार कहलाते हैं।
हमारे दैनिक जीवन में pH के महत्व
हमारे दैनिक जीवन में पी एच के निम्न महत्व हैं-
1. पौधों एवं पशुओं की pH के प्रति संवेदनशीलता
हमारे शरीर का pH मान लगभग 7 से 7.8 की परास में होता है। pH का मान घटने या बढ़ने पर हमें कुछ अस्वभाविक लक्षण दिखाई देते हैं। तथा हमारे शरीर में होने वाली क्रियाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
वर्षा के जल का pH मान 5.6 से कम हो हो तो ऐसी वर्षा को अम्लीय वर्षा कहते हैं। इस वर्षा के जल से जीव धारियों की उत्तरजीविता कठिन हो जाती है। तथा जलीय जीव मृत्यु को भी प्राप्त हो जाते हैं।
2. बगीचे की मिट्टी का pH
अच्छी उपज के लिए पौधों को एक विशिष्ट pH परास की आवश्यकता होती है। पौधों के वृद्धि एवं विकास का लिए उदासीन मृदा उपयुक्त होती है।
3. हमारे पाचन तंत्र का pH
हमारे आमाशय से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल(प्रबल अम्ल) निकलता है। जो बिना नुकसान पहुंचाए भोजन के पाचन में सहायक होता है। अपच की स्थिति में उदर (आमाशय) अधिक मात्रा में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल उत्पन्न करता है। जिसके कारण उदर में दर्द एवं जलन होने लगती है। इस दर्द से मुक्त होने के लिए एन्टैसिड जैसे क्षारक का उपयोग करते हैं।
4. pH के कारण दंत क्षय
मुंह के pH का मान 5.5 से कम होने पर दांतो का क्षय होने लगता है। दांतों का इनैमल कैल्शियम फॉस्फेट का बना होता है जो जल में नहीं घुलता यह शरीर का सबसे कठोर पदार्थ है। मुंह में उपस्थित बैक्टीरिया भोजन के पश्चात मुंह में बचे अवशिष्ट एवं शर्करा का अपघटन कर अम्ल उत्पन्न करते हैं जिससे मुँह का pH मान 5.5 से कम होने लगता है इस स्थिति में दांतों का क्षय होने लगता है। क्षारीय प्रकृति के दंत मंजन से दाँतों का क्षय होने से रोका जा सकता है। (भोजन के पश्चात दांत साफ करने से अवशिष्ट साफ हो जाते हैं इसलिए अम्ल भी बैक्टीरिया उत्पन्न नहीं करते हैं। अत: दाँतों का क्षय भी नहीं होता है।)
5. पशु एवं पौधों द्वारा उत्पन्न रसायनों से आत्मरक्षा
मधुमक्खी का डंक एक अम्ल छोड़ता है। जिससे दर्द का अनुभव होता है। डंक मारे गये स्थान पर बैंकिंग सोड़ा जैसा दुर्बल क्षारक रगड़ने से आराम मिल जाता है।
क्लोर-क्षार प्रक्रिया
सोडियम हाइड्रोक्साइड का निर्माण करने के लिए सोडियम क्लोराइड के जलीय विलयन में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर सोडियम क्लोराइड वियोजित या अपघटित होकर सोडियम हाइड्रोक्साइड का निर्माण करता है। इस प्रक्रिया को क्लोर-क्षार प्रक्रिया कहते हैं।  इस प्रक्रिया में बनने वाले उत्पाद क्लोरीन (क्लोर) और सोडियम हाइड्रोक्साइड क्षार होता है। इस प्रक्रिया में क्लोरीन गैस एनोड़ पर मुक्त होती है तथा हाइड्रोजन गैस केथोड़ पर। तथा कैथोड़ पर सोडियम हाइड्रोक्साइड का निर्माण होता है।
विरंजक चूर्ण
विरंजक चूर्ण का रासायनिक सूत्र CaOCl2 होता है। जलीय सोडियम क्लोराइड के विद्युत अपघटन से क्लोरीन का निर्माण होता है। कैल्शियम हाइड्रोक्साइड की क्रिया क्लोरीन से कराने पर विरंजक चूर्ण का निर्माण होता है।
विरंजक चूर्ण के उपयोग
- रासायनिक उद्योगों में उपचायक के रूप में, ,वस्त्र उद्योग एवं कागज की फैक्ट्री में।
- पीने वाले जल को जीवाणुओ से मुक्त करने के लिए रोगाणुनाशक के रूप में उपयोग में लिया जाता है।
बेकिंग सोडा
बेकिंग सोड़ा का रासायनिक सूत्र NaHCO3 (सोडियम हाइड्रोकार्बोनेट) होता है इसके निर्माण के लिए सोडियम क्लोराइड को कच्चे पदार्थ के रूप में उपयोग करते हैं।
बेकिंग सोड़ा के उपयोग
- बेकिंग सोड़ा का उपयोग अम्ल को उदासीन करने के लिए किया जाता है।
- इसका उपयोग खाने को शीघ्रता से बनाने के लिए भी किया जाता है। इसे गर्म करने पर निम्न अभिक्रिया होती है-
2NaHCO3--> Na2CO3 + H2O + CO2
- इसका उपयोग एन्टैसिड के निर्माण में भी किया जाता है। यह भी क्षारक है जो अम्ल को उदासीन करता है।
- बेकिंग सोड़ा का उपयोग सोडा-अम्ल अग्निशामक में भी किया जाता है।
- बेकिंग सोड़ा का उपयोग बेकिंग पाउडर बनाने आदि में किया जाता है।
- बेकिंग पाउडर को गर्म करने पर निम्न अभिक्रिया होती है
NaHCO3 + H --> CO2 + H2O + अम्ल का सोडियम लवण
- अभिक्रिया से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड के कारण पावरोटी या केक में खमीर उठ (फूल) जाता है। जिससे ये मुलायम एवं स्पंजी हो जाते हैं।
धोने का सोडा
यह भी एक लवण है जिसका रासायनिक सूत्र Na2CO3.10H2O (सोडियम कार्बोनेट)होता है। इसका निर्माण बेकिंग सोडे को गर्म करके तथा पुन: क्रिस्टलीकरण करके किया जाता है।इसे सोडियम क्लोराइड से भी प्राप्त किया जा सकता है।
जल सोडियम कार्बोनेट को नम बनाता है।
सोडियम कार्बोनेट अथवा धोने के सोडे के उपयोग
- सोडियम कार्बोनेट का उपयोग काँच, साबुन एवं कागज उद्योगों में।
- सोडियम कार्बोनेट का उपयोग बोरेक्स जैसे सोडियम यौगिक के उत्पादन में, घरेलू साफ सफाई में तथा जल की स्थाई कठोरता को दूर करने में भी किया जाता है।
क्रिस्टलन का जल
लवण के क्रिस्टलों में जल उपस्थित होता है। लवण के एक इकाई सूत्र में जल के निश्चित अणुओं की संख्या को क्रिस्टलन जल कहते हैं।
जलीय कॉपर सल्फेट का रासायनिक सूत्र CuSO4.5H2O होता है अतः इस के एक इकाई सूत्र में जल के पाँच अणु हैं।
जिप्सम
जिप्सम एक अन्य लवण है जिस का रासायनिक सूत्र CaSO4.2H2O होता है जिसके एक इकाई सूत्र में जल के दो अणु होते हैं।
प्लास्टर ऑफ पेरिस
प्लास्टर ऑफ पेरिस का रासायनिक सू्त्र-
CaSO4 . 1/2 H2O होता है। यह एक सफेद चूर्ण होता है।
जिप्सम को 373 केल्विन ताप पर गर्म करने पर यह जल के अणु को त्याग कर कैल्शियम सल्फेट, अर्द्धहाइड्रेट या हेमिहाइड्रेट बनाता है जिसे प्लास्टर ऑफ पेरिस कहते हैं।
प्लास्टर ऑफ पेरिस में कैल्शियम सल्फेट के दो सूत्र एक जल के अणु से जुड़े होते हैं।

प्लास्टर ऑफ पेरिस के उपयोग
- प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग डॉक्टर टूटी हुई हड्डीयों को सही जगह पर रखने के लिए करते हैं।
- प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग सजावट, खिलौने बनाने एवं सतह को चिकना बनाने आदि में किया जाता है।

प्लास्टर ऑफ पेरिस से जिप्सम का निर्माण
प्लास्टर ऑफ पेरिस में जल मिलाने पर पुन: जिप्सम बन जाता है।
CaSO4. 1/2 H2O + H2O--> CaSO4.2H2O

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